हिंदी के मशहूर कवि सर्वेश्वर दयाल सक्सेना की कविता की पंक्तियां हैं- इब्न-बतूता पहन के जूता निकल पड़े तूफान में… वो आगे लिखते हैं- उड़ते-उड़ते उनका जूता पहुंच गया जापान में. इसी पर गुलजार का भी एक मशहूर गीत है. लेकिन शो मैन राज कपूर की श्री420 फिल्म में शैलेन्द्र के लिखे गीत- मेरा जूता है जापानी… का मतलब क्या है? राज कपूर का जूता जापानी क्यों है, वह अमेरिकन या ईरानी क्यों नहीं? अव्वल तो ये कि जब पर्दे पर राज के किरदार में राज कपूर इस गीत को गाते हैं तो आगे की पंक्तियां कुछ यूं जोड़ते जाते हैं- ये पतलून इंग्लिश्तानी और सर पे लाल टोपी रूसी… इस तरह खुद को ग्लोबल बना लेते हैं लेकिन जब अंत में कहते हैं कि फिर भी दिल है हिंदुस्तानी… तो हरेक भारतीय का सीना चौड़ा हो जाता है. देश प्रेम का ऐसा भाव, जहां कोई बनावट नहीं, सीधी-सी बात न कोई मिर्च-मसाला.
आज हम मेरा जूता है जापानी… मतलब समझने की कोशिश करते हैं. इस गीत को गीतकार शैलेन्द्र ने लिखा था. राज कपूर पर्दे पर उस गीत का रूपक प्रस्तुत कर रहे थे. शैलेन्द्र के अनन्य मित्र थे- अरविंद कुमार जो कि उस वक्त मुंबई में टाइ्म्स घराने की प्रतिष्ठित पत्रिका माधुरी के संपादक थे. तीनों में अच्छी यारी थी. दिल्ली में अरविंद कुमार से मेरा मिलने और वार्ता का सिलसिला लगातार बना रहता था. उसी दौरान मैंने उनसे पूछा कि मेरा जूता है जापानी… का मतलब क्या है? उन्होंने बहुत दिलचस्प बात बताई. तब किस तरह के जूते को जापानी कहा जाता था. इस लेख में हम आगे इसकी चर्चा करेंगे.
इलाहाबाद से बिना पैसे के चला मुंबई
पहले जरा इस गीत और इसकी पृष्ठभूमि पर नजर डाल लेते हैं. फिल्म शुरू होती है- एक सुनसान सड़क पर दूर से राज कपूर कंधे पर पोटली टांगे दौड़ते आते हुए दिखाई देते हैं. तिराहे पर पहुंचते हैं. दो दिशाओं को इंगित करने वाले बोर्ड लगे हैं- बागरा तवा और ग्रामखेड़ी. दोनों जगह मध्य प्रदेश में हैं. फिल्म में आगे पता चलता है- राज इलाहाबाद से निकले हैं और मुंबई काम के सिलसिले में जा रहे हैं. लेकिन जेब में पैसे नहीं हैं. रेलवे स्टेशन जाने के लिए रास्ते में कार वालों से लिफ्ट मांगते हैं लेकिन कोई लिफ्ट नहीं देता. फिर जूते को एक नजर देखते हैं- और कहते हैं- चल बेटा जापानी. जूते का अगला हिस्सा फटा है- पैर के अंगूठे हरकतें करते हुए झांक रहे हैं. अद्भुत शॉट है. इसी के बाद यह गाना शुरू होता है- मेरा जूता है जापानी…
पूरे गीत और इसके फिल्मांकन में व्यंग्यात्मकता पिरोई हुई है. फटे जूते वाला वह एक अलमस्त सैलानी है जैसे कोई दरिया तूफानी हो. राज कपूर कभी चार्ली चैप्लिन अंदाज में पैदल चलते हैं, रास्ते में सांप दिखते ही डर से तेज भागते हैं, कभी ऊंट पर तो कभी हाथी पर सवार होकर गाते हुए सफर पूरा करते हैं. कुछ सीन की चर्चा लाजिमी है. वो हाथी पर सवार हैं- अगल-बगल दो साधु कंधे पर कंबल और हाथों में कमंडल लिये चल रहे हैं, वह मस्त फकीर बनकर गा रहे हैं- सूरत है जानी-पहचानी… दुनिया वालों को हैरानी…
पोटली में ईमानदारी का तमगा- सोने का सिक्का
रास्ते में रेगिस्तान आता है. बंजारों का जत्था जा रहा है. ऊंटों का भी रेला है. अगले शॉट में वह ऊंट पर सवार हैं- और गाते हैं- ऊपर नीचे, नीचे ऊपर लहर चले जीवन की… यहां तरन्नुम और ताल देखने लायक है. रेगिस्तानी जमीन पर ऊंट की लचकती चाल और गीत की पंक्तियों के भाव का मिलान कीजिए. अनोखा दृश्य है यह. सबसे अनोखी बात तो ये कि गीत में देशभक्ति का भाव कूट-कूट कर भरा है. अंतरे की अगली पंक्ति है- नादां है जो बैठ किनारे पूछे राह वतन की… यह तंज है. भला वतन का भी रास्ता पूछा जा सकता है!
राज जाहिर करना चाहता है- वह बेरोजगार है, उसके जूते फटे हैं, शरीर पर चिप्पियों वाली बहुरंगी पोषाकें हैं तो क्या हुआ उसका दिल तो हिंदुस्तानी है, वह सच्चा देशभक्त है. इस प्रकार वह पूरी राह गाते हुए मनोरंजन करते हुए अपने गंतव्य की ओर बढ़ जाता है. उसके लिए रुकना मौत की निशानी है और चलना जीवन की कहानी. अगला शॉट शाही सवारी का है. राजसी ठाठ बाट से सजे हाथी-घोड़े और शस्त्रों से लैस सैनिकों की परेड. अब वह ऊंट की बजाय हाथी पर सवार है. हाथी पर तनकर यूं बैठा है मानो कहीं का राजकुमार हो. अगली पंक्ति है- होंगे राजे राज कुंवर हम बिगड़े दिल शहजादे… वह फटेहाल है लेकिन उसके इरादे हैं कि वह जब-जब चाहेगा सिंहासन पर जा बैठेगे. ये आम आदमी का सपना है… ये साधारण वजूद वाले इंसान का हौसला है, जिसके जूते फटे थे, लेकिन उसकी पोटली में ईमानदारी का तमगा है जो उसे बतौर प्राइज सोने के सिक्के के रूप में मिला था. गाना खत्म होता है और अगला शॉट है- मुंबई की चकाचौंध.
मुंबई में दोनों मिले- 420 और श्री 420
फिल्म में मुंबई को पैसों के पीछे भागने वालों के शहर के रूप में दिखाया गया है. रास्ते में उसे एक बोर्ड भी दिखा- जिस पर लिखा था- मुंबई 420 किमी. यह सन् 1955 की फिल्म थी. यानी इस शहर का ऐसा व्यावसायिक चरित्र पहले से ही स्थापित है. तमाम फिल्मों में मुंबई के इस चरित्र को दर्शाया गया है. श्री 420 भी धोखेबाजों, बेईमानों, लुटेरों, बदमाशों के साथ-साथ लाचारों, बेकारों और बेरोजगारों की कहानी कहती है. इसी शहर में राज बीए की डिग्री लेकर आता है और खुद को ईमानदार बताता है, लेकिन एक भिखारी से सीख मिलती है- यहां इन बातों का कोई महत्व नहीं. हालात से मजबूर राज भी चार सौ बीसी के गलत धंधे में शामिल हो जाता है.
इसी शहर में उसे सेठ सोनाचंद धर्मानंद मिलता है जिसने रास्ते में उसे अपनी गाड़ी से धक्के मार कर सड़क पर फेंक दिया था. वह सेठ के साथ मिलकर सीधे-सादे लोगों को ठगने और जालसाजी में शामिल होकर अमीर बन जाता है. लेकिन एक दिन उसका जमीर जाग जाता है, ईमान संवेदनशील बना देता है. तब उसे ‘420’ और ‘श्री420’ में फर्क समझ आता है. दुनिया में बहुत सारे लोग चालाकी, होशियारी, बेईमानी और जालसाजी से रातों रात अमीर बनने की जुगाड़ में लगे रहते हैं. जो साधारण हैं, गरीब हैं, सड़क छाप फरेबी है वह तो ‘420’ हैं लेकिन सफेदपोश जालसाज ‘420’ नहीं बल्कि ‘श्री420’ होते हैं. यह दौलतमंदों के दिखावे और उसके गोरखधंधे पर तंज था.
जापानी जूता एक तरह का मुहावरा था
अब शैलेन्द्र और राज कपूर के मित्र अरविंद कुमार की कही उस बात पर आते हैं, जो उन्होंने जापानी जूते के बारे में कही थी और इस गीत का मतलब भी बताया था. उन्होंने कहा था- उस जमाने में जापानी जूता एक प्रकार का मुहावरा बन गया था और इसमें देशभक्ति का भाव भी शामिल था. जापान शक्तिशाली और संपन्न मुल्क है. स्वतंत्रता आंदोलन के समय स्वदेशी और विदेशी वस्तुओं का नारा बुलंदी पर रहा. उसका असर आजादी के बाद भी देखा गया और आज भी है. फिल्म में इस बाबत एक सीन भी है.
मुंबई में सेठ सोनाचंद धर्मानंद राजनीतिक भाषण देने आया है- वह लोगों को हाथ जोड़ कर प्रणाम बोलता है. ठीक दूसरी तरफ राज ने भी मजमा लगा रखा है. वह हिंदुओं को राम राम, मु्स्लिमों को सलाम, ईसाइयों को गुड मॉर्निंग और सिखों को सत श्री अकाल बोलता है. सेठ सोनाचंद धर्मानंद आगे बोलता है- मुझे देखिए, मेरे वस्त्रों को देखिए- मैं जो कुछ भी पहनता हू्ं- वह स्वदेशी है. दूसरी तरफ राज कहता है- मेरी तरफ देखिए, मेरी लिबास का मुआयना कीजिए.. मेरे जूते हैं जापानी… फिर सीने पर हाथ ठोककर कहता है- लेकिन दिल है हिंदुस्तानी.
तत्कालीन राजनीति पर व्यंग्य भी था
अरविंद कुमार ने आगे कहा था- तब के समय में जापानी जूता उसे कहा जाता था- जो टूटा और फटा हो. इस मुहावरे में विदेशी वस्तुओं की भव्यता पर कटाक्ष भी था. गरीबों के पैर के फटे जूतों को जापानी जूता कहा जाता था. गीत में राज कपूर की पोषाक पर गौर कीजिए. उसकी पैंट टखने से काफी ऊपर है जिसे वह इंग्लिश्तानी कहता है. इस कारण उसका फटा जूता साफ-साफ दिखता भी है. अगर फिल्म ब्लैक एंड ह्वाइट न होती तो सिर पर लाल टोपी का रंग भी साफ-साफ दिख जाता. तब दुनिया भर में जापान, रूस और ब्रिटेन अपनी अलग-अलग विशेषताओं के लिए जाने गए. इस गीत में इन तीन देशों की छाप है- यानी भले ही राज ग्लोबल हो लेकिन उसका दिल हिंदुस्तानी है.
इस गीत में तब की राजनीति का प्रतिबिंब भी था. यह उन नेताओं पर भी कटाक्ष था जो स्वदेशी का नारा तो जोर शोर से लगाते थे लेकिन सेठ सोनाचंद धर्मानंद की तरह आम लोगों से फरेब करके चांदी काटते थे. यह आज भी प्रासंगिक है.
अपने राज्य / शहर की खबर अख़बार से पहले पढ़ने के लिए हमारा एप्प डाउनलोड करें |
Copyright Disclaimer Under Section 107 of the Copyright Act 1976, allowance is made for “fair use” for purposes such as criticism, comment, news reporting, teaching, scholarship, and research. Fair use is a use permitted by copyright statute that might otherwise be infringing. Non-profit, educational or personal use tips the balance in favor of fair use.
Source link