दरगाह खवाज गरीब नवाज. (Photo-Getty)
राजस्थान की राजधानी जयपुर से 135 किलोमीटर दूर स्थित अजमेर शहर सुर्खियों में है. यहां स्थित ख्वाजा गरीब नवाज दरगाह शरीफ को शिव मंदिर होने का दावा किया जा रहा है. दरगाह शरीफ से जुड़ी एक याचिका अजमेर की स्थानीय अदालत में डाली गई है. इसके लिए अजमेर के रहने वाले हरविलास शारदा की 100 साल पुरानी एक किताब ‘अजमेर हिस्टोरिकल एंड डिस्क्रिप्टिव’ का जिक्र किया गया है. इस किताब को आधार बनाकर याचिकाकर्ता ने कोर्ट में दरगाह शरीफ को शिव मंदिर होने का दावा किया गया है. ख्वाजा गरीब नवाज की दरगाह शरीफ करीब 850 साल पुरानी है. आइए इसके इतिहास पर एक नजर डालते हैं.
पूर्वी ईरान के शहर सजीस्तान में 536 हिजरी यानि 1143 ईस्वी को जन्में ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती 13वीं शताब्दी की शुरुआत में ईरान से अफगानिस्तान होते हुए लाहौर पहुंचे. यहां से दिल्ली फिर अजमेर में अपना ठहराव किया. यहां रहकर वह खुदा की इबादत में मशगूल हो गए. सूफिज्म पर लिखने वाले सुमन मिश्रा कहते हैं कि ख्वाजा साहब की दरगाह शरीफ 850 साल पुरानी है. इस दरगाह का निर्माण धीरे-धीरे हुआ है. तकरीबन 228 साल तक यह दरगाह कच्ची रही है.
1236 में खवाजा साहब ने दुनिया को कहा अलविदा
सुमन मिश्रा कहते हैं कि सूफी संत ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती शांति की तलाश में दुनिया घूमने के बाद लाहौर पहुंचे. अपने 2-4 मुरीदों के साथ वह लाहौर से दिल्ली और फिर अजमेर पहुंचे थे. यहां लोगों को शांति और आपसी मोहब्बत का पैगाम दिया. जिस स्थान पर ख्वाजा साहब ने इबादत की वहीं उन्होंने आखिरी सांस ली. 634 हिजरी (1236 ईस्वी) रजब के महीने में वह अपने हुजरे (इबादत वाला कमरा) में गए. 6 दिन के बाद जब हुजरे का दरवाजा खोला गया तो ख्वाजा साहब इस दुनियों को अलविदा चुके थे. उसी हुजरे में उनकी मजार बनाई गई और यही जगह ख्वाजा साहब की दरगाह शरीफ है. हर साल रजब के महीने में ख्वाजा साहब की याद में 6 दिन का उर्स मनाया जाता है.
दरगाह शरीफ के 21 दरवाजे
सूफीनामा और मुनादी पत्रिका के मुताबिक, ख्वाजा गरीब नवाज की दरगाह शरीफ अजमेर के दक्षिण-पश्चिम इलाके में स्थित है. दरगाह के पश्चिम में मोहल्ला इंदर कोट है तो पूरब में लंगर खाना बना हुआ है. दरगाह की उत्तर दिशा में बाजार है. दरगाह के दक्षिण में झरना बना हुआ है जिसे झालरा कहा जाता है. इससे दरगाह को पानी सप्लाई होता था. दरगाह शरीफ के छोटे बड़े 21 दरवाजे हैं. लेकिन तीन दरवाजे उपयोग में है. शुरूआती दौर में यह दरगाह छोटी और बिलकुल सादा थी. सबसे पहले यहां खिल्जी सलातीन माल्वा ने दरगाह का इहाता और गुंबद वगैरा बनवाया था.
228 सालों तक दरगाह रही कच्ची
ख्वाजा गरीब नवाज की दरगाह इंडो-इस्लामिक कल्चर की बेहतरीन इमारत है. करीब 200 सालों तक यह दरगाह कच्ची रही. 1464 में मांडू के सुलतान गयासुद्दीन खिलजी ने इसे पक्का करवाया था. उसके बाद मुगल शासन में दरगाह शरीफ का विस्तार हुआ.syedajmersharif.com के मुताबिक, ख्वाजा गरीब नवाज की दरगाह का सफेद संगमरमर का गुंबद हुमायूं के दौर में 1532 में बनाया गया था और यह इंडो-इस्लामिक वास्तुकला का उदाहरण है. दरगाह परिसर में कई संरचनाएं और आठ प्रवेश द्वार हैं. हालांकि, आज इनमें से केवल तीन का उपयोग किया जाता है. दरगार परिसर के निर्माण के लिए संगमरमर, ईंट और बलुआ पत्थर इस्तेमाल किए गए हैं.
1570 में अकबर ने बनवाई अकबरी मस्जिद
आईने-अकबरी के मुताबिक, सन 1561 से 1568 ईस्वी तक सैन्य उद्देश्यों के लिए सम्राट अकबर को अजमेर की दरगाह जाना पड़ा था. अकबर के कोई सन्तान नहीं थी. 1570 में वह ख्वाजा साहब की दरगाह शरीफ पर पहुंचे और वहां पुत्र प्राप्ति के लिए दुआ की. उनकी इच्छा सलीम के पुत्र के साथ पूरी हुई. ख्वाजा साहब का धन्यवाद करने के लिए अकबर ने आगरा से अजमेर दरगाह तक पैदल चलकर पहुंचे. आगरा से अजमेर चलकर आने में उन्हें 15 दिन लगे. उसी वर्ष अकबर ने दरगाह परिसर में एक शानदार मस्जिद का निर्माण किया. वर्तमान में इस मस्जिद को अकबरी मस्जिद कहते हैं. 1570 ईस्वी में अकबर द्वारा निर्मित मुख्य मेहराब 56 फीट ऊंची है.
राजा जयसिंह ने बनवाया चांदी का कटघरा
दरगाह परिसर में बेगुमी दलान को मुगल राजकुमारी जहांआरा ने 1646 ईस्वी में मकबरे के पूर्वी हिस्से में सुंदर संगमरमर का उपयोग करके बनवाया था. मस्जिद शाहजहानी को 1640 ईस्वी में मुगल बादशाह शाहजहां ने 14 वर्षों और 2,40,000 रुपये खर्च करके निर्माण कराया था. इसी दौर में राजपूत शासक राजा जयसिंह नेदरगाह के अंदर बेहतरीन नक्काशी किया हुआ एक चांदी का कटघरा बनवाया था. इस कटघरे के अंदर ख्वाजा साहब की मजार है.
ब्रिटेन की मलिका क्वीन मेरी ने बनवाई छतरी
अकबर ने दरगाह में चराग-दानों की छतरी भी बनवाई थी जो अब तक मौजूद है. दरगाह शरीफ में दाखिल होने वाला पहला दरवाजा निजाम गेट कहलाता है, इसे 1915 में निजाम हैदराबाद ने बनवाया था. इसके बाद आने वाला छोटा दरवाजा जिसे शाहजहांनी दरवाजा कहते हैं, ये मुगल बादशाह शाहजहां ने बनवाया था. दरगाह में 1891 में हैदराबाद के अमीर पाएगाह नवाब सर आसमान जाह ने महफिल खाना बनवाया. उसके सामने मौजूद धमाल खाने में बनी छतरी का निर्माण 1911 में ब्रिटेन की मलिका क्वीन मेरी ने बनवाई थी.
रामपुर के नवाब ने बनवाया सुनहरा ताज
दरगाह शरीफ में खूबसूरत संदली मस्जिद बनी है. पश्चिम की ओर शाहजहांनी मस्जिद बनी है जिसे बादशाह शाहजहां ने 1637 ईस्वी में बनवाया था. दरगाह शरीफ की गुंबद पर सुनहरा ताज को खानदान-ए-रामपुर के एक रईस नवाब हैदर अली खान आफ बिल्सी ने भेंट किया था. खवाजा गरीब नवाज की दरगाह शरीफ चिश्ती सिलसिले की सबसे बड़ी खानकाह है. यहां सभी धर्मों के लोग देश और दूसरे मुल्कों से बड़ी अकीदत के साथ आते हैं.
इन्होंने भी की जियारत
दरगाह शरीफ पर राष्ट्रपिता महात्मा गांधी, प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरु, महान कवि रवीन्द्रनाथ टैगोर, सरोजिनी नायडू, पंडित मदनमोहन मालवीय से लेकर जयप्रकाश नारायण, अटल बिहारी वाजपेयी और इंदिरा गांधी जैसी विख्यात हस्तियों ने ख्वाजा साहब के संदेश को समझा, जाना और अपनी अकीदत के फूल अजमेर आकर पेश किए.
– India Samachar
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