उत्तर प्रदेश की सियासत में दलित-मुस्लिम प्रयोग सियासी परवान नहीं चढ़ पा रहा है. सूबे के 9 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव में बसपा प्रमुख मायावती से लेकर सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव और आजाद समाज के प्रमुख चंद्रशेखर आजाद ने दलित-मुस्लिम समीकरण का दांव चला था लेकिन बीजेपी की सोशल इंजीनियरिंग के सामने पस्त नजर आया. इससे पहले 2022 के विधानसभा और 2024 के लोकसभा चुनाव में भी मायावती ने दलित-मुस्लिम का फॉर्मूला चला था लेकिन बसपा को सियासी संजीवनी नहीं दे सका. सवाल उठता है कि यूपी में दलित-मुस्लिम समीकरण जीत के लिए ट्रंप कार्ड साबित नहीं हो पा रहा?
यूपी में चुनाव दर चुनाव अपने खिसकते हुए सियासी जनाधार को वापस हासिल करने के लिए बसपा प्रमुख मायावती दलित-मुस्लिम समीकरण के सहारे उपचुनाव में मीरापुर और कुंदरकी सीट जीतने का तानाबाना बुना था. इसके लिए दोनों ही सीटों पर बसपा ने मुस्लिम प्रत्याशी उतारे थे. इसी तरह नगीना से सांसद बने चंद्रशेखर आजाद ने भी अपनी आजाद समाज पार्टी से मीरापुर और कुंदरकी सीट पर मुस्लिम को टिकट दिया था. ऐसे ही अखिलेश यादव ने गाजियाबाद सीट पर दलित-मुस्लिम समीकरण बनाने के लिए सिंहराज जाटव को सपा का टिकट दिया था. दलित कैंडिडेट के जरिए सपा की सियासी मंशा दलित-मुस्लिम समीकरण बनाने की थी.
गाजियाबाद में नहीं चला सपा का दलित-मुस्लिम दांव
सपा ने गाजियाबाद सीट पर दलित-मुस्लिम समीकरण का सियासी प्रयोग गाजियाबाद सीट पर इस बार किया था. अखिलेश ने गाजियाबाद जैसी जनरल सीट पर दलित समाज से आने वाले सिंहराज जाटव को उतारा था. सपा की मंशा दलित-मुस्लिम समीकरण बनाने की लग रही थी लेकिन यह सफल नहीं हो सकी. इस सीट पर दलित और मुस्लिम वोटरों की संख्या मिलाकर एक लाख से भी ज्यादा की होती है जबकि यहां पर यादव वोटर भी है. इसके बाद भी सपा को 28 हजार से कम वोट मिले हैं.
गाजियाबाद सीट पर सपा का दलित-मुस्लिम समीकरण दूसरी बार फेल हुआ है. 2022 में सपा ने दलित समाज से आने वाले विशाल वर्मा पर दांव खेला था लेकिन उन्हें सिर्फ साढ़े 44 हजार वोट ही मिल सके थे. इस बार सिर्फ उससे भी कम वोट मिले हैं. 2024 के लोकसभा चुनाव में मेरठ में दलित और मुस्लिम समीकरण के सहारे जीत की उम्मीद लगाई थी लेकिन बीजेपी से पार नहीं पा सके. गाजियाबाद के उपचुनाव में सपा के सिंहराज जाटव को सिर्फ मुस्लिम वोट ही मिल सका है, दलितों को वोट अपने साथ जोड़ने में फेल रहे. ऐसा ही वोटिंग पैटर्न मेरठ में दिखा था. सपा प्रत्याशी सुनीता वर्मा को मुस्लिमों ने एकमुश्त वोट दिया लेकिन दलितों का विश्वास जीत नहीं सके.
मायावती का दलित-मुस्लिम समीकरण फिर फेल
मायावती यूपी में दलित मुस्लिम समीकरण के सहारे सियासी वजूद बचाने के लिए संघर्ष कर रही हैं लेकिन सफल नहीं हो पा रहीं. उपचुनाव में बसपा ने मीरापुर और कुंदरकी विधानसभा सीट पर मुस्लिम प्रत्याशी उतारे थे. इन दोनों ही सीटों पर बसपा की मंशा दलित-मुस्लिम समीकरण बनाने की थी. ऐसे में मीरापुर सीट पर बसपा के प्रत्याशी शाहनजर को 3248 वोट मिले और पांचवें नंबर पर रहे. कुंदरकी सीट पर भी बसपा पांचवें नंबर पर रही. बसपा के रफातुल्ला को 1099 को सिर्फ वोट मिले. इस सीट पर दलित-मुस्लिम वोटर जीत की गारंटी माने जाते हैं. इसके बाद भी बसपा दलित-मुस्लिम का दांव कारगर नहीं रहा.
कुंदरकी सीट बसपा दो बार जीत चुकी है तो मीरापुर सीट पर भी उसके विधायक रहे हैं. उपचुनाव नतीजे से यह बात भी साफ हो गई है कि बसपा का अपना कोर वोटबैंक जाटव समुदाय भी मायावती की पकड़ से बाहर निकल रहा है और नए सियासी विकल्प की तलाश में है. ऐसे में बसपा के मुस्लिम उम्मीदवार को भी वोट देने के लिए तैयार नहीं है. इससे पहले 2024 के लोकसभा चुनाव और 2022 के विधानसभा चुनाव में मायावती ने मुस्लिम-दलित समीकरण बनाने के लिए बड़ी संख्या में मुस्लिम प्रत्याशी उतारे थे. मगर, एक भी सीट पर जीत नहीं मिली थी. नगर निगम चुनाव में भी बसपा का दलित-मुस्लिम का फॉर्मूला नहीं चल सका था.
दलित-मुस्लिम राह पर चंद्रशेखर आजाद
2024 के लोकसभा चुनाव में नगीना सीट पर पर मुस्लिम वोटों के बदौलत चंद्रशेखर आजाद सांसद बनने में सफल रहे हैं. मुस्लिमों ने इंडिया गठबंधन के तहत सपा से चुनाव लड़ने वाले और बसपा से लड़ने वाले उम्मीदवारों को वोट नहीं दिया था. मुस्लिमों ने एकमुश्त होकर चंद्रशेखर आजाद को वोट दिया था, जिसकी बदौलत लोकसभा चुनाव जीत दर्ज की थी. इस विनिंग फॉर्मूले को चंद्रशेखर आजाद ने यूपी उपचुनाव में दांव चला था. मीरापुर, कुंदरकी ही नहीं फूलपुर सीट पर मुस्लिम प्रत्याशी उतारे थे लेकिन दलितों को वोट जुटाने में फेल रहे. इसका नतीजा रहा कि सभी उपचुनाव में चंद्रशेखर आजाद के मुस्लिम उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गई.
मीरापुर सीट पर चंद्रशेखर आजाद की पार्टी के प्रत्याशी जाहिद हुसैन 22661 वोटों के साथ तीसरे नंबर पर रहे. कुंदरकी विधानसभा सीट पर चंद्रशेखर आजाद के पार्टी के प्रत्याशी चांद बाबू को 14201 वोट मिले हैं. इस सीट पर चंद्रशेखर और ओवैसी को बसपा से ज्यादा वोट मिले हैं. गाजियाबाद सीट पर चौथे नंबर पर चंद्रशेखर आजाद की पार्टी को 8269 वोट मिले हैं. इन तीनों ही विधानसभा सीटों पर मुस्लिम और दलित समीकरण जीत की गारंटी माने जाते हैं. चंद्रशेखर आजाद के प्रत्याशी मुस्लिम वोट हासिल करने में कुछ हद सफल रहे लेकिन दलितों का विश्वास नहीं जीत सके. मीरापुर से लेकर कुंदरकी और गाजियाबाद ही नहीं खैर, सीसामऊ जैसी सीटों पर भी दलित समुदाय का बड़ा हिस्सा बीजेपी के साथ गया है. इस तरह दलित-मुस्लिम समीकरण फेल रहा.
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