रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन अमेरिका विरोधी देशों को एकजुट कर रहे हैं. चीन, उत्तर कोरिया और ईरान के बाद इस लिस्ट में अफगानिस्तान भी शामिल हो चुका है. पुतिन के दूत बनकर अफगानिस्तान पहुंचे सर्गेई शोइगु ने तालिबान के साथ बड़ा समझौता किया है. दरअसल तालिबान के पास अमेरिकी मिलिट्री तकनीक का बड़ा खजाना मौजूद है. माना जा रहा है कि रूस इसके जरिए अपने हथियारों को और ज्यादा आधुनिक बनाना चाहता है. जिसकी वजह से यूरोपीय देशों की टेंशन बढ़ गई है.
रूस के ओरेशनिक जलजले को अभी हफ्ता भर भी नहीं बीता, अमेरिका और नाटो देश अभी रूसी राष्ट्रपति की इस नई मिसाइल के खतरे और ताकत को लेकर मंथन कर ही रहे हैं कि पुतिन ने यूरोप में एक बार फिर भूचाल ला दिया है. इस भूचाल के पीछे अफगानिस्तान से आई कुछ तस्वीरें हैं.
24 घंटे के भीतर चार अलग-अलग मीटिंग
महज 24 घंटे पहले रूस की सुरक्षा परिषद के सचिव सर्गेई शोइगु काबुल एयरपोर्ट पहुंचे. जहां उनका स्वागत तालिबानी नेताओं ने किया. महज 24 घंटे में रूसी राष्ट्रपति के दूत ने एक बाद एक बाद चार अलग-अलग मीटिंग की. सर्गेई शोइगु की तालिबान के उप प्रधानमंत्री मुल्ला अब्दुल गनी बरादर से भी मुलाकात हुई. इन मुलाकातों के बाद रूस और तालिबान के बीच अहम रक्षा समझौता हुआ.
जिसके मुताबिक रूस अमेरिकी हथियारों की रिपेयरिंग में तालिबान की मदद करेगा. तालिबान आर्मी को अमेरिकी हथियार चलाने की ट्रेनिंग देगा और रूस तालिबान सरकार को हथियार भी मुहैया कराएगा. सिर्फ इतना ही नहीं रूस ने बहुत जल्द तालिबान सरकार को मान्यता देने का भी वादा किया है.
यूरोप और अमेरिका के लिए खतरे का अलार्म
पुतिन के दूत सर्गेई शोइगु का अफगानिस्तान दौरा और इस समझौते ने यूरोप और अमेरिका के लिए खतरे का अलार्म बजा दिया है. माना जा रहा है कि इस समझौते का उद्देश्य सुपर पावर मुल्क के वो हथियार हैं जिन्हें अमेरिकी सैनिक 3 साल पहले यानी साल 2021 में अफगानिस्तान में मौजूद अपने आर्मी बेस पर छोड़ गए थे.
अब सर्गेई शोइगु के इस दौरे और समझौते को रूस के नए हथियारों के प्रोजेक्ट से जोड़ा जा रहा है. दावा है कि रूस तालिबान के जरिए अमेरिकी हथियारों की तकनीक हासिल करना चाहता है. जिसके बदले वो तालिबान को अमेरिकी हथियार रिपेयर करके देगा. फोर्ब्स की एक रिपोर्ट के एक मुताबिक साल 2021 में जब अमेरिकी सेना अफगानिस्तान छोड़कर निकली तो अपने कई आधुनिक हथियार यहां छोड़ गई थी.
इस लिस्ट में अमेरिका का ब्लैक हॉक हेलिकॉप्टर, MI-17 हेलिकॉप्टर, MD-530 लाइट हेलिकॉप्टर, C-130 हरक्यूलिस विमान A29 लड़ाकू विमान, PC-12 टोही और निगरानी विमान शामिल है. इसके अलावा अमेरिका अपने आधुनिक कम्युनिकेशन और सर्विलांस सिस्टम भी अफगानिस्तान में छोड़ गया था.
क्या है वजह?
दरअसल हाल ही में रूस ने यूक्रेन पर ओरेश्निक मिसाइल से हमला किया था जिसके बाद रूसी राष्ट्रपति ने ऐलान किया है कि रूस नए हथियारों पर काम जारी रखेगा. आने वाले दिनों में वो कई एडवांस हथियारों की टेस्टिंग करने वाला है. अब माना जा रहा है कि रूस के नए हथियारों में अमेरिकी तकनीक भी देखने को मिल सकती है. जिसके जरिए वो अपने शस्त्रागार को और मारक बना सकेगा. यही यूरोप और अमेरिका की सबसे बड़ी टेंशन है.
अमेरिका की टेंशन इसलिए भी बढ़ गई है क्योंकि कुछ रिपोर्ट्स की मानें तो पुतिन अफगानिस्तान में छोड़े गए अमेरिकी हथियारों को भी रूस लाने की तैयारी में है. रिपोर्ट्स के मुताबिक अमेरिका ने अफगानिस्तान में 700 करोड़ डॉलर के हथियार छोड़े हैं जिसमें 23,825 हमवी, 900 कॉम्बेट व्हीकल, 189 आर्मर्ड पर्सनल कैरियर, 2 लाख 50 हजार ऑटोमेटिक राइफल, 25 हजार ग्रेनेड लॉन्चर और 1800 तोपें शामिल हैं.
नए ड्रोन विकसित करने पर भी पुतिन का फोकस
माना जा रहा है कि इन हथियारों को रूस यूक्रेन जंग में इस्तेमाल कर सकता है. सिर्फ इतना ही नहीं रूस का फोक्स अब नए ड्रोन विकसित करने पर भी है जिसकी वजह तेजी के साथ बदलता युद्ध का तरीका है. बीते कुछ वक्त में जंग में ड्रोन का इस्तेमाल काफी ज्यादा बढ़ चुका है. यही वजह है कि अब रूस मिसाइलों के साथ-साथ ड्रोन तकनीक पर भी काम कर रहा है जिसका खुलासा दिमित्री मेदवेदेव ने किया है. उन्होंने एक इंटरव्यू के दौरान कहा.
साफ है कि रूस की ओरेशनिक मिसाइल और शोइगु के अफगानिस्तान दौरे ने यूरोप को दहशत से भर दिया है. नाटो ये समझ चुका है कि अगर उसने रूस के खिलाफ कोई पुख्ता रणनीति नहीं बनाई. तो आने वाले वक्त में पुतिन को रोकना नामुमकिन हो जाएगा.
(टीवी9 ब्यूरो रिपोर्ट)
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सौजन्य से टीवी9 हिंदी डॉट कॉम
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