अखिलेश यादव और योगी आदित्यनाथ
मई 2024 में हुए लोकसभा चुनाव में देश के सबसे बड़े सूबे उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी बुरी तरह से हारी थी. समाजवादी पार्टी पीडीए के समीकरण और गठबंधन के सहारे सबसे बड़ी पार्टी बन गई, लेकिन 6 महीने बाद ही अखिलेश इसे कायम नहीं रख पाए. इसका उदाहरण यूपी के उपुचनाव में देखने को भी मिला.
यूपी उपचुनाव की 9 सीटों पर सपा सिर्फ 2 जीत सकी है. हार का सबसे मुख्य कारण मई के सबक बताए जा रहे हैं. कहा जा रहा है कि अखिलेश ने मई के उन सबक को याद नहीं रखा, जिसकी वजह से वे चुनाव में जीते थे और यही कारण है कि उपचुनाव में सपा के साथ गेम हो गया.
कुंदरकी और कटेहरी की सीटिंग सीट हारी
समाजवादी पार्टी ने 2022 के विधानसभा चुनाव में कुंदरकी और कटेहरी सीट पर जीत हासिल की थी, लेकिन इस बार के उपचुनाव में सपा इन दोनों ही सीटों पर बुरी तरह हार गई.
सपा फूलपुर और मझवां सीट पर भी मुकाबले में थी, लेकिन पार्टी को यहां भी जीत नहीं मिली. सपा सिर्फ करहल और सीसामऊ की सीट पर जीत दर्ज कर पाई.
गैर यादव ओबीसी को साथ नहीं रख पाए
लोकसभा चुनाव में गैर-यादव ओबीसी को साथ लेकर अखिलेश यादव ने यूपी की सियासत में उलटफेर कर दिया था. सपा पहली बार रिकॉर्ड 36 सीटों पर जीत हासिल की थी. इस बार के चुनाव में अखिलेश ने गैर यादव ओबीसी को टिकट जरूर दिया, लेकिन उसे साध नहीं पाए.
अखिलेश ने टिकट वितरण में जातियों को तो साधने की कोशिश जरूर की, लेकिन नेताओं के परिवार से बाहर नहीं निकले. कटेहरी में लालजी वर्मा की पत्नी को उम्मीदवार बना दिया. इसी तरह मझवां सीट पर रमेश बिंद की बेटी ज्योति बिंद को उतारा था. अखिलेश की पार्टी दोनों ही सीटों पर हार गई.
फूलपुर में अखिलेश ने कुर्मी उम्मीदवार के सामने मुस्लिम उम्मीदवार उतार दिए. यहां भी अखिलेश की पार्टी जीत नहीं पाई.
उपचुनाव में साथ छोड़ घर बैठ गए कांग्रेसी
उपचुनाव को लेकर पहले अखिलेश यादव कांग्रेस को साथ लेने की कवायद में जुटे थे, लेकिन हरियाणा चुनाव के बाद ओवरकन्फिडेंस में आ गए. उन्होंने कांग्रेस को सिर्फ एक सीट देने की बात कही. बात न बनता देख अखिलेश ने कांग्रेस को 2 सीटों की ऑफर किया, लेकिन कांग्रेस ने इसे भी लेने से इनकार कर दिया.
कांग्रेस ने बिना लड़े ही उपचुनाव में सपा को समर्थन दे दिया. शुरुआत में कांग्रेसियों ने प्रचार करने की भी बात कही लेकिन चुनाव प्रचार से पार्टी के नेता दूर ही रहे. कांग्रेस का घर बैठना भी सपा के लिए नुकसानदेह साबित हुआ. खासकर फूलपुर और मझवां जैसी सीटों पर.
मझवां में कांग्रेस का सियासी दबदबा रहा है. इस बार के उपचुनाव में कांग्रेस यह सीट अपने लिए चाह रही थी, लेकिन सपा ने देने से इनकार कर दिया. सपा यहां करीब 10 हजार वोटों से हार गई.
एक रहेंगे तो सेफ रहेंगे का संदेश नहीं दे पाए
जातिगत धार को कुंद करने के लिए बीजेपी ने यूपी में बटेंगे तो कटेंगे और एक रहेंगे तो सेफ रहेंगे का नारा दिया था. यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ अपनी हर रैली में इन नारों को दोहरा रहे थे.
अखिलेश पूरे चुनाव में इस नारे की काट नहीं खोज पाए. अखिलेश इसे सिर्फ नकरात्मक नारा ही बताते रहे. इसका परिणाम यह हुआ कि मुस्लिम बहुल कुंदरकी और मीरापुर जैसी सीटों पर भी समाजवादी पार्टी चुनाव हार गई.
लोकसभा चुनाव में बीजेपी के हिंदुत्व पॉलिटिक्स को कुंद करने के लिए इंडिया गठबंधन ने संविधान का नारा दिया था, जो काफी प्रभावी साबित हुआ था.
बूथ मैनेजमेंट में पिछड़ गए सपा के नेता
अखिलेश यादव उपचुनाव के तौर-तरीके को भांप नहीं पाए. अधिकांश जगहों पर सपा के वोटर्स वोट ही नहीं दे पाए. अखिलेश यादव इसे मुद्दा बनाने में जरूर सफल रहे, लेकिन संख्या के हिसाब से उन्हें फायदा नहीं मिल पाया. मीरापुर, कटेहरी, कुंदरकी में सपा के समर्थक वोट ही नहीं डाल पाए.
सपा ने इसकी शिकायत भी चुनाव आयोग से की, लेकिन शिकायत का कोई असर नहीं हुआ.
– India Samachar
.
.
Copyright Disclaimer :- Under Section 107 of the Copyright Act 1976, allowance is made for “fair use” for purposes such as criticism, comment, news reporting, teaching, scholarship, and research. Fair use is a use permitted by copyright statute that might otherwise be infringing., educational or personal use tips the balance in favor of fair use.
यह पोस्ट सबसे पहले टीवी नाइन हिंदी डॉट कॉम पर प्रकाशित हुआ , हमने टीवी नाइन हिंदी डॉट कॉम के सोंजन्य से आरएसएस फीड से इसको रिपब्लिश करा है, साथ में टीवी नाइन हिंदी डॉट कॉम का सोर्स लिंक दिया जा रहा है आप चाहें तो सोर्स लिंक से भी आर्टिकल पढ़ सकतें हैं
The post appeared first on टीवी नाइन हिंदी डॉट कॉम Source link