महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव प्रचार का शोर अब थम गया है. चुनाव प्रचार के अंतिम पड़ाव में राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (शरद पवार गुट) के प्रमुख शरद पवार ने अपने विरोधियों को कड़ी चुनौती दी. पवार ने विरोधियों को बता दिया है कि उनसे पंगा लेना भारी पड़ सकता है. इसके लिए उन्होंने अपने राजनीतिक जीवन का उदाहरण भी दिया और कहा कि जिन लोगों ने मेरा साथ विश्वासघात किया है उन्हें सबक सिखाना जरूरी है.
माधा में एक जनसभा को संबोधित करते हुए कहा कि महाराष्ट्र में मेरा अनुभव है, मैंने कई विधानसभा, लोकसभा चुनाव और राज्यसभा चुनाव लड़े हैं. 1980 में मैं विदेश गया था तब भी 52 विधायकों ने बगावत कर सरकार का साथ दिया था, जिसके बाद मुझे विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष का पद भी गंवाना पड़ा. इसके बाद भी मैंने हिम्मत नहीं हारी.
उन्होंने कहा कि तीन साल की कड़ी मेहनत के बाद चुनाव में मैंने नए उम्मीदवार मैदान में उतारे और 52 पुराने विधायकों में से एक भी जीतकरनहीं आए. सब के सब हार गए. इसलिए किसी से भी पंगा ले लीजिए, लेकिन मुझसे नहीं. जिन्होंने हमारे साथ विश्वासघात किया है, उन्हें सबक सिखाना जरूरी है.
निशाने पर अजित पवार तो नहीं?
पवार के इस बयान को उनके भतीजे अजित पवार से जोड़कर देखा जा रहा है. अजित पवार वो नेता हैं जिन्होंने एनसीपी को दो हिस्सों में बांट दिया. अपने साथ कई विधायकों को तोड़कर पहले वो शिंदे सरकार में शामिल हुए, उसके बाद एनसीपी पर भी कब्जा जमा लिया. कहा जा रहा है कि शरद पवार के भीतर कहीं न कहीं उनकी पार्टी टूटने का दर्द है जिसका जवाब वो मौजूदा चुनाव के जरिए देना चाहते हैं.
शरद पवार महाविकास अघाड़ी के साथ तो अजित महायुति के साथ
महाराष्ट्र की सियासत में चाचा और भतीजे की जोड़ी में कुछ इस कदर दरार पैदा हुआ कि अजित पवार बीजेपी और शिवसेना शिंदे गुट की महायुति गठबंधन में शामिल हो गए. दूसरी ओर शरद पवार महाविकास अघाड़ी के साथ खड़े हैं जिसमें कांग्रेस और उद्धव ठाकरे गुट की शिवसेना है. कहा जा रहा है कि चुनावी मैदान में चाचा और भतीजे दोनों एक दूसरे को कमतर दिखाने में लगे हुए हैं. चाचा और भतीजे में कौन किस पर भारी पड़ेगा इसका पता 23 नवंबर को चल जाएगा क्योंकि इसी दिन चुनाव के नतीजे सामने आने वाले हैं.
288 सीटों पर 20 नवंबर को चुनाव
विधानसभा चुनाव के लिए मतदान बुधवार 20 नवंबर को है. तो विधानसभा चुनाव का नतीजा 23 नवंबर को है. 2019 के बाद राज्य दो बड़ी पार्टियों में बंट गया. एनसीपी और शिवसेना के बीच विभाजन के बाद पार्टी दो गुटों में बंट गई. इनमें एनसीपी के अजित पवार गुट ने बीजेपी को समर्थन दिया और सरकार में हिस्सा लिया. एनसीपी में विभाजन से पहले शिवसेना में भी बड़ा विभाजन हुआ था.
उद्धव ठाकरे को मुख्यमंत्री पद से देना पड़ा था इस्तीफा
एकनाथ शिंदे की बगावत के बाद उद्धव ठाकरे को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा. इसके बाद बीजेपी के समर्थन से एकनाथ शिंदे मुख्यमंत्री बने. इस बीच चूंकि इस विभाजन के बाद राज्य में पहली बार विधानसभा चुनाव हो रहा है, इसलिए इस चुनाव पर राज्य की नहीं, बल्कि देश की निगाहें टिकी हैं. इस बात को लेकर काफी उत्सुकता बनी हुई है कि क्या राज्य में फिर से महायुति सरकार आएगी या फिर महाविकास अघाड़ी सरकार बनेगी.
– India Samachar
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