झारखंड में 13 नवंबर को 43 सीटों पर वोटिंग हुई
झारखंड विधानसभा चुनाव में पहले चरण में 15 जिलों की 43 सीटों पर मतदान हुआ, जिसमें 683 उम्मीदवारों की किस्मत ईवीएम मशीन में कैद हो चुकी है. बुधवार को पहले चरण में मतदाताओं का उत्साह पिछली बार से ज्यादा दिखा. पहले फेज की 43 विधानसभा सीटों पर मतदान 66.48 फीसदी रहा जबकि 2019 के विधानसभा चुनाव में इन्हीं सीटों पर 63.75 फीसदी वोटिंग हुई थी.
झारखंड चुनाव के पहले चरण में कोल्हान, दक्षिणी छोटानागपुर, पलामू और उत्तरी छोटानागपुर इलाके की सीटों के वोटिंग ट्रेंड देखें तो पिछले चुनाव से करीब तीन फीसदी मतदान इस बार ज्यादा रहा. ग्रामीण इलाके में ज्यादा वोटिंग हुई तो शहरी मतदाता सुस्त नजर आए. झारखंड के पहले चरण की सीटों पर बढ़ी वोटिंग से राजनीतिक दलों की धड़कनें बढ़ गई हैं. इस बार का चुनाव बीजेपी नेतृत्व वाले एनडीए और कांग्रेस के अगुवाई वाले इंडिया गठबंधन के बीच सीधा मुकाबला है.
जानें, कहां कितना रहा मतदान
चुनाव आयोग के मुताबिक, झारखंड चुनाव के पहले चरण में सरायकेला-खरसावां जिले में सबसे अधिक 76.02 फीसदी वोटिंग दर्ज की गई तो लोहदरगा जिले में 73.21 फीसदी मतदान रहा जबकि, हजारीबाग जिले में सबसे कम 62.78 प्रतिशत मतदान हुआ. इसके अलावा अन्य जिलों में देखें तो चतरा में 64, पूर्वी सिंहभूम में 67.10, पश्चिमी सिंहभूम में 66.87, गढ़वा में 68.42, गुमला में 69.01, सिमडेगा में 68.74, खूंटी में 68.36, लातेहार में 67.16,रामगढ़ में 66.32, पलामू में 62.97, कोडरमा में 62.15 और रांची में 62.56 फीसदी मतदान रहा.
इस तरह से बहरागोड़ा, खरसावां और घाटशिला समेत कोल्हान,उत्तरी छोटानागपुर, दक्षिणी छोटानागपुर और पलामू इलाके की विधानसभा क्षेत्रों में मतदाताओं में खासा उत्साह दिखा. ये इलाका ग्रामीण और आदिवासी क्षेत्र माने जाते हैं. वहीं. रांची और जमशेदपुर समेत अन्य शहरी क्षेत्रों में मतदान प्रतिशत अपेक्षाकृत कम रहा. जेएमएम का आधार ग्रामीण इलाके में है तो बीजेपी की पकड़ शहरी क्षेत्र में है, लेकिन बीजेपी इस बार जिस तरह से आदिवासी सीटों पर फोकस कर रखा था, उसके चलते कुछ आदिवासी बेल्ट में बढ़ी वोटिंग कुछ भी गुल खिला सकती है.
क्या कहता है वोटिंग ट्रेंड?
झारखंड विधानसभा चुनाव के पहले चरण की 43 विधानसभा सीटों पर 2019 की अपेक्षा 2024 के विधानसभा चुनाव में कई सीटों पर रिकॉर्ड वोटिंग हुई है. राजनीतिक विश्लेषक अपने-अपने तरीके से वोटिंग ट्रेंड का विश्लेषण कर रहे हैं और वो एनडीए और इंडिया गठबंधन के सत्ता में काबिज होने का अनुमान लगा रहे हैं. हालांकि, यह बात तय है कि इस चरण में 43 सीटों में जिस गठबंधन को अधिक सीटें मिलेगी, सत्ता उसी के नाम होगी.
अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित 28 सीटों में से 20 सीटों पर बुधवार को संपन्न हो गया. पहले चरण में ही कोल्हान की सभी 14 सीटों पर वोट डाले गए तो दक्षिणी छोटानागपुर की 13 सीटें, पलामू की 9 सीटें और उत्तरी छोटानागपुर क्षेत्र 7 सीट पर मतदान हो गया. पहले फेज की 43 सीटों में से जो 20 सीटें अनुसूचित जनजाति के लिए रिजर्व हैं, उन सीटों पर पिछले चुनाव की तुलना में 3 फीसदी से भी ज्यादा मतदान रहा है. इसके अलावा अनुसूचित जाति की 9 में से छह सीटों पर भी वोट डाले गए. यही वोट तय करेगा कि सरकार किसकी बनेगी.
वोटिंग ट्रेंड से समझें सत्ता का खेल
झारखंड बनने के बाद से यह पांचवा विधानसभा चुनाव है. पिछले चार चुनाव के वोटिंग ट्रेंड को देखें तो जब-जब कम वोटिंग हुई है तो राज्य में सरकार अस्थिर ही रही है. पांच साल तक मुख्यमंत्री बनते और हटते रहे. वहीं, जब भी चुनाव में वोट प्रतिशत बढ़ा तो राज्य को स्थिर सरकार मिली और पांच साल चली. झारखंड में पहली बार 2005 में चुनाव हुए और 57 फीसदी वोटिंग हुई थी. इस चुनाव में किसी को भी बहुमत नहीं मिला और पांच साल में चार सरकारें बनी और गिरी. इतना ही नहीं एक बार राष्ट्रपति शासन भी लगा.
साल 2009 में विधानसभा चुनाव हुए तो 56.97 फीसदी वोटिंग हुई, जो पिछले चुनाव के लगभग बराबर ही रही. इस बार भी बहुमत किसी एक दल को नहीं मिल सका और पांच साल में तीन सरकार बनी जबकि दो बार राष्ट्रपति शासन लगा. इसके बाद 2014 विधानसभा चुनाव में 66.42 फीसदी वोटिंग हुई थी, जो 2009 के तुलना में 10 फीसदी ज्यादा रही. झारखंड में पहली बार स्थिर सरकार मिली और पांच साल तक चली.
2019 के विधानसभा चुनाव में 65.18 फीसदी मतदान हुआ था, जो पिछली बार से एक फीसदी कम मतदान रहा था, लेकिन पांच साल के लिए स्थिर सरकार मिली. हालांकि, जेल जाने के चलते हेमंत सोरेन के सीएम पद से इस्तीफा देना पड़ा था और दूसरे को सत्ता सौंपनी पड़ी थी. इसके बाद जेल से बाहर आए तो फिर मुख्यमंत्री की कुर्सी संभाल ली.
किस दल का क्या दांव पर लगा?
झारखंड के पहले चरण में जेएमएम के 23 उम्मीदवारों की किस्मत दांव पर लगी है तो कांग्रेस के 17 प्रत्याशी है. आरजेडी के 5 सीटों कैंडिडेट है, जिनमें से दो विधानसभा सीटों पर कांग्रेस से फ्रेंडली फाइट है. वहीं, एनडीए के तहत 43 में से 36 सीटों पर बीजेपी के उम्मीदवार हैं. सुदेश महतो की आजसू के चार, नीतीश कुमार की जदयू के दो और चिराग पासवान की लोजपा (आर) का एक सीट पर उम्मीदवार किस्मस दांव पर लगी है.
पहले चरण में जिन 43 सीटों पर बुधवार को वोटिंग हुई है, उसे 2019 के चुनावी लिहाज से देखें तो जेएमएम सबसे ज्यादा सीटें जीतने में सफल रही थी और उसके बाद बीजेपी को सीटें मिली हैं. हेमंत सोरेन की अगुवाई में जेएमएम 17 सीटें और कांग्रेस ने 8 सीटें जीती थीं. एनसीपी और आरजेडी एक-एक सीट जीती थी. वहीं, बीजेपी ने 13 विधानसभा सीटें जीती थीं और एक सीट जेवीएम ने जीती थी जबकि 2 सीटों पर निर्दलीय विधायक चुने गए थे.
महागठबंधन ने 28 सीटों पर जीत दर्ज कर बीजेपी को सत्ता से बेदखल कर दिया था, लेकिन इस बार सियासी हालत बदल गए हैं. बीजेपी ने आजसू से लेकर जेडीयू और चिराग पासवान की एलजेपी से गठबंधन कर रखा है. इंडिया गठबंधन ने जिन 28 सीटों पर पिछली बार जीत दर्ज की थी, उन सीटों पर भी वोटिंग में 3 फीसदी से ज्यादा बढ़ोत्तरी देखने को मिली है. बीजेपी की जीती हुई 13 सीटों पर भी वोटिंग में 2 फीसदी तक की बढ़त है.
सीटिंग विधायकों के लिए ये खतरे की घंटी?
झारखंड चुनाव के पहले चरण में वोटिंग फीसदी बढ़ने के नफा-नुकसान का आकलन किया जा रहा, लेकिन सीटिंग विधायकों के लिए ये खतरे की घंटी हो सकती है. उनकी धड़कने बढ़ गई होंगी, क्योंकि एंटी इनकंबेंसी में वोटिंग के बढ़ने का ट्रेंड हैं. आदिवासी सीटों पर वोटिंग बढ़ने का मतलब है कि क्या उनके खिलाफ सत्ता विरोधी लहर है. झारखंड के हर चुनाव में 50 फीसदी से भी ज्यादा विधायक हार जाते हैं. पिछले चार बार के चुनाव का यही ट्रेंड है.
2019 के चुनाव में 81 विधायकों में से 45 विधायकों को हार झेलनी पड़ी थी. 2014 में 55 विधायकों को मात खानी पड़ी थी. ऐसे ही 2009 के विधानसभा चुनाव में 61 मौजूदा विधायक को शिकस्त खानी पड़ी थी. इस तरह 2005 के चुनाव में देखें तो मौजूदा 50 विधायकों को हार झेलनी पड़ी थी. जेएमएम-कांग्रेस ने पिछली बार पहले चरण की 43 में से 28 सीटें जीतकर सत्ता अपने नाम की थी, लेकिन इस बार वोटिंग का ट्रेंड बता रहा है कि झारखंड के नतीजे चौंकाने वाले हो सकते हैं?
– India Samachar
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