महाराष्ट्र की सियासत में पुसाद और बारामती जैसी सीट कोई और नहीं.
महाराष्ट्र में टिकटों के बंटवारे, बगावत और नाराजगी की टेंशन के बाद राजनीतिक दल चुनाव प्रचार में शिद्दत के साथ जुट गए हैं. प्रमुख राजनीतिक दलों की ओर से ताबड़तोड़ चुनावी रैलियां आयोजित की जा रही हैं. पीएम नरेंद्र मोदी समेत कई प्रमुख नेता यहां चुनावी प्रचार में लगे हैं, लेकिन राज्य की सियासत में कुछ सीटें ऐसी भी हैं जिनके वोटर्स को चुनाव प्रचार का कोई फर्क नहीं पड़ता. उनके वोट सेट हैं और वहां परिवारवाद इस कदर हावी है कि एक ही परिवार के वारिसों को लगातार वोट देकर जीत दिलाते रहे हैं.
शिवाजी की धरती महाराष्ट्र में ऐसी सीटों की संख्या ढेरों हैं जिन्हें किसी न किसी राजनीतिक दल का गढ़ माना जाता रहा है. कहीं पर भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी), कहीं पर कांग्रेस, कहीं पर राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी और कहीं पर शिवसेना की बादशाहत नजर आती है. लेकिन यहां की 2 विधानसभा सीटें ऐसी भी हैं जिन्होंने शुरू से ही एक ही परिवार के लोगों को विधानसभा भेजती रही है. एक सीट पर यह सिलसिला आजादी के समय से निरंतर चला आ रहा है.
बारामती सीट पर अजेय ‘पवार परिवार’
शरद पवार महाराष्ट्र की राजनीति के पितामह कहे जाते हैं. वह 3 बार राज्य के मुख्यमंत्री रहे. साथ ही केंद्र में भी रक्षा मंत्री रहने के अलावा कई अहम पदों को संभाला. राज्य की सियासत के लिए उन्होंने पुणे जिले की बारामती विधानसभा सीट चुनी. यह सीट साल 1962 में अस्तित्व में आई और यहां के पहले चुनाव में कांग्रेस के टिकट पर मालतीबाई शिरोले को जीत मिली. पहले चुनाव को छोड़ दिया जाए तो यह सीट हमेशा से ‘पवार परिवार’ के दबदबे की वजह से जानी जाती है.
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बारामती सीट से 1967 के चुनाव में 27 साल की उम्र में शरद पवार पहली बार मैदान में उतरे और वह विजयी रहे. पवार की जीत का सिलसिला एक बार शुरू हुआ तो वह लगातार चलता ही रहा. कांग्रेस के टिकट पर शरद ने 1967 के बाद 1972 और 1978 में जीत हासिल कर अपनी हैट्रिक बनाई. इस बीच देश की सियासत में बड़ी हलचल हुई और कांग्रेस में विभाजन हो गया. वह 1978 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (यू) के साथ चले गए और नई पार्टी के टिकट पर चौथी बार विजयी हुए.
चाचा की तरह भतीजे को नहीं मिली हार
हालांकि कुछ समय बाद वह नई पार्टी इंडियन कांग्रेस में चले गए. 1985 के चुनाव में उन्हें इसी पार्टी के टिकट पर जीत मिली. बारामती विधानसभा सीट पर 1990 में उन्होंने आखिरी बार चुनाव लड़ा और अपनी मूल पार्टी कांग्रेस के टिकट पर अपनी छठी जीत दर्ज कराई.
चाचा शरद पवार की पदचिन्हों पर चलते हुए भतीजे अजीत पवार ने भी सियासत की राह चुनी. वह 1982 में ही राजनीति में आ गए. 90 के दशक में पीवी नरसिम्हा राव के प्रधानमंत्री बनने और शरद पवार के केंद्र में जाने की वजह से खाली हुई बारामती सीट पर 1991 के उपचुनाव में अजीत पवार ने अपनी चुनौती पेश की. यहां के लोगों ने शरद के बाद भतीजे अजीत को भी अपना समर्थन दिया. हालांकि इससे पहले 1991 के लोकसभा चुनाव में वह बारामती संसदीय सीट से सांसद चुन लिए गए थे.
2024 में पवार परिवार के बीच ही जंग
फिर वह लगातार इसी सीट से चुनाव जीतते रहे. 1995 के चुनाव में वह कांग्रेस के टिकट पर दूसरी बार विजयी हुए. लेकिन इस बीच सोनिया गांधी के विदेशी होने के मुद्दे पर शरद पवार कांग्रेस से अलग हो गए और 1999 में राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी का गठन किया. वह इस पार्टी के टिकट पर 1999 से लगातार 5 चुनाव जीत चुके हैं. इस तरह से अजीत पवार लगातार 7 बार से यहां विधायक चुने जाते रहे हैं.
हालांकि साल 2022 में अजीत ने पार्टी में बगावत कर दिया और कई विधायकों के साथ अलग गुट बना लिया. बाद में उनके गुट को असली राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के रूप में मान्यता दे दी गई. अब 2024 के चुनाव में यहां पर दिलचस्प मुकाबला हो रहा है. बगावत से खफा चाचा शरद ने अजीत से सामने अपने एक अन्य पोते को मैदान में उतारा है. शरद ने अजीत के भाई श्रीनिवास पवार के बेटे युगेंद्र पवार को खड़ा किया है. ऐसे में यहां का परिणाम कुछ भी हो, लेकिन जीत ‘पवार परिवार’ के खाते में ही आएगी.
बारामती से ज्यादा पुसाद में बड़ा जलवा
‘पवार परिवार’ का जैसा जलवा बारामती में दिखता है वैसा ही जलवा यवतमाल जिले की पुसाद विधानसभा सीट पर ‘नाइक परिवार’ का रहा. ‘पवार परिवार से ज्यादा जलवा ‘नाइक परिवार’ का है क्योंकि इस परिवार के आगे यहां पर कोई भी विधायक नहीं बन सका. 1952 के पहले चुनाव से लेकर 2019 तक के सभी चुनावों में ‘नाइक परिवार’ के ही लोग विधायक चुने जाते रहे हैं. खास बात यह है कि ‘नाइक परिवार’ की ओर से इसी सीट की नुमाइंदगी करते हुए प्रदेश को 2 मुख्यमंत्री भी दिए हैं.
‘नाइक परिवार’ के जलवे की शुरुआत 1952 में वसंतराव नाइक करते हैं. कांग्रेस के टिकट पर वसंतराव नाइक ने यहां से पहली जीत हासिल की. वह इस सीट पर 1972 तक लगातार 5 बार चुने गए. इस बीच वह 1963 में राज्य के मुख्यमंत्री भी बने. वह लगातार 11 साल 2 महीने और 15 दिन तक मुख्यमंत्री बने रहे.
चाचा-भतीजे को CM बनाने वाली सीट
वसंतराव नाइक के 1977 में लोकसभा चुनाव जीतकर संसद में जाने की वजह से पुसाद सीट पर ‘नाइक परिवार’ की ओर से उनके भतीजे सुधारकरराव नाइक को उतारा गया. वोटर्स ने उन्हें भी जीत से नवाजा और वह विधानसभा तक पहुंचे. चाचा की तरह मुख्यमंत्री बनने वाले भतीजे सुधाकरराव पुसाद सीट से 4 बार विधायक चुने गए. देश में चाचा और भतीजे के सीएम की संभवतः यह एकमात्र जोड़ी भी है.
सुधाकरराव के बाद उनके भाई मनोहर नाइक को 1995 में पुसाद सीट से उतारा गया और उन्हें शानदार जीत मिली. वह राज्य में मंत्री भी बने. इस बीच सोनिया गांधी के मसले पर साल 1999 में शरद पवार ने बगावत करते हुए कांग्रेस छोड़ दी और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के नाम से नई पार्टी बनाई. सुधाकरराव भी शरद के साथ चले गए. नई पार्टी के टिकट पर सुधाकर ने 1999 का चुनाव लड़ा और पांचवीं बार विधायक बने.
2014 के चुनाव में ‘नाइक परिवार’ में बगावत
उनके बाद इस सीट पर सुधाकर के भाई मनोहरराव ने 2004 से 2014 तक लगातार 3 जीत हासिल करते हुए अपनी शानदार हैट्रिक जमाई. हालांकि 2014 के चुनाव में परिवार में बगावत हो गई. मनोहरराव को अपने भतीजे निलय नाइक के बागी तेवर का सामना करना पड़ा. निलय बाद में बीजेपी में चले गए. लेकिन जीत मनोहर के खाते में ही गई.
पुसाद सीट पर ‘नाइक परिवार’ के बीच ही मुकाबला रहा. बागी तेवर दिखाने वाले निलय 2019 के विधानसभा चुनाव में पूर्व मंत्री मनोहर नाइक के छोटे बेटे इंद्रनील के खिलाफ मैदान में उतरे. लेकिन उन्हें फायदा नहीं मिला और मनोहर के बेटे इंद्रनील चुनाव जीतने में कामयाब रहे. इस तरह से यहां पर तीसरी पीढ़ी की जीत की शुरुआत हो गई. वहीं बीजेपी ने निलय नाइक को विधान परिषद भेज दिया.
2024 में नाइक Vs नाइक होते-होते रह गया
2019 से 2024 के चुनाव तक आते-आते राज्य की सियासत बहुत बदल गई. शरद पवार की बनाई राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी में फूट पड़ गई. भतीजे अजीत पवार ने बगावत कर दिया. अजीत के साथ उनके खेमे में विधायक इंद्रनील नाइक भी आ गए. हालांकि इस परिवार में इंद्रनील के बड़े भाई ययाति इस बात से नाराज हो गए कि उन्होंने अजीत के साथ जाने के फैसले पर उनके साथ कोई विचार नहीं किया. ययाति शरद पवार गुट के साथ हो गए.
2024 के चुनाव में एनसीपी (अजीत पवार) ने फिर से इंद्रनील को उतारा है. ययाति नाइक ने अपने भाई के खिलाफ मैदान में उतरने का ऐलान कर दिया था. बतौर निर्दलीय प्रत्याशी अपना नामांकन भी दाखिल कर दिया. लेकिन नाइक बंगले में लंबी बातचीत के बाद ययाति ने नामांकन वापस लेने के अंतिम दिन अपना नाम वापस ले लिया जिससे पुसाद सीट पर 2 सगे भाइयों के बीच संभावित चुनावी संघर्ष टल गया.
लेकिन महाराष्ट्र की सियासत में पिछले कुछ सालों में ‘नाइक परिवार’ और ‘पवार परिवार’ दोनों ने अपने-अपने यहां बगावत के सुर देखे हैं, जबकि अब तक यहां के वोटर्स ने खुलकर दोनों दिग्गज राजनीतिक परिवारों का साथ दिया है. अब देखना दिलचस्प होगा कि दशकों से दोनों परिवारों का चला आ रहा जीत का सिलसिला बागी तेवरों के बीच 2024 में बना रहता है या नहीं.
– India Samachar
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