देवेंद्र फडणवीस और नाना पटोले
महाराष्ट्र की सत्ता का रास्ता विदर्भ के इलाके से होकर गुजरता है. बीजेपी 2014 और 2019 में विदर्भ में अपना सियासी दबदबा कायम कर महाराष्ट्र की सियासत को अपने हाथों में रखा, लेकिन 2024 के लोकसभा चुनाव में यह दरक गया है. कांग्रेस विदर्भ में अपना खोया हुआ सियासी जनाधार वापस पाने में कामयाब रही है, जिसके चलते विधानसभा चुनाव में अब दोनों ही पार्टियां पूरी ताकत इस इलाके पर लगा रखी है. इसके साथ उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस से लेकर चंद्रशेखर बावनकुले, विपक्षी नेता विजय वडेट्टीवार और कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष नाना पटोले की अग्निपरीक्षा इसी विदर्भ के इलाके में होनी है.
महाराष्ट्र के विदर्भ इलाके में कुल 62 विधानसभा सीटें आती हैं, जिसमें से 35 सीटों पर कांग्रेस और बीजेपी के बीच सीधा मुकाबला है. छह विधानसभा सीटों पर शिंदे की शिवसेना बनाम उद्धव की शिवसेना (यूबीटी) और सात सीटों पर अजीत पवार की एनसीपी बनाम शरद पवार की एनसीपी (एस) के बीच मुकाबला है. इस तरह से समझा जा सकता है कि कांग्रेस और बीजेपी का सारा दारोमदार विदर्भ के इलाके पर ही टिका हुआ है.
विदर्भ का सियासी समीकरण
2014 के महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में विदर्भ के इलाके की कुल 62 विधानसभा सीटों में से बीजेपी 44 सीटें जीतने में कामयाब रही. शिवसेना को 4, कांग्रेस को 10, एनसीपी को 1 और अन्य को 4 सीटें मिली थीं. इसके बाद 2019 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने विदर्भ इलाके में 29 सीटें जीती थीं और शिवसेना ने 4 सीटें जीती थी. विदर्भ में कांग्रेस 15 सीटें तो एनसीपी 6 सीटें थी. इसके अलावा 8 सीटें अन्य ने जीती थी. इस तरह बीजेपी ने विदर्भ इलाके के जरिए महाराष्ट्र की सियासत में अपना दबदबा कायम रखा था.
पिछले दस सालों से बीजेपी ने विदर्भ के इलाके में अपनी पकड़ बनाए रखी, लेकिन 2024 के लोकसभा चुनाव से सियासी समीकरण बदल गए हैं. लोकसभा चुनावों में बीजेपी के अगुवाई वाले एनडीए गठबंधन को विदर्भ इलाके में धक्का लगा था जबकि कांग्रेस नेतृत्व वाले इंडिया गठबंधन को सियासी फायदा मिला. विदर्भ इलाके की 10 लोकसभा सीटों में से बीजेपी को महज दो सीटें ही मिली तो कांग्रेस ने पांच सीटें जीती हैं. उद्धव की शिवसेना (यूबीटी) ने एक और शरद पवार की एनसीपी (एस) ने एक सीट जीती है. बीजेपी के सहयोगी एकनाथ शिंदे की शिवसेना को सिर्फ एक सीट मिली थी.
बीजेपी और कांग्रेस का इम्तिहान
लोकसभा चुनाव के नतीजों ने विदर्भ के इलाके ने बीजेपी के लिए सियासी टेंशन बढ़ा दी है और कांग्रेस के लिए उम्मीद की किरण जगा रही है. बीजेपी को 2019 के विधानसभा चुनाव से ही झटका लग गया था, जब उसे 15 सीटों का नुकसान उठना पड़ा था. इसके बाद 2024 के लोकसभा चुनाव ने भी पार्टी को तगड़ा झटका दिया है. कांग्रेस दोबारा से अपनी खोई हुई सियासी जमीन हासिल करने में कामयाब होती दिख रही है, जिसके चलते ही राहुल गांधी ने महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव का शंखनाद विदर्भ के नागपुर से किया है. सामाजिक न्याय का नाराज बुलंद कर राहुल ने विदर्भ के सियासी समीकरण को साधने की कवायद की है.
बीजेपी के लिए दस साल से मजबूत बना विदर्भ का दुर्ग दरकने लगा है और बीजेपी के लिए सियासी टेंशन बढ़ा दी है. इसके चलते पीएम मोदी ने चुनाव ऐलान से पूर्व ही विदर्भ के बेल्ट को फिर से मजबूत करने के लिए कई सौगात से नवाजा था. बीजेपी इस बात को समझ रही है कि विदर्भ को जीते बिना महाराष्ट्र की जंग को फतह नहीं किया जा सकता है. इसके लिए बीजेपी ने अपनी पूरी ताकत विदर्भ बेल्ट में ही झोंक रखी है.
फडणवीस से पटोले तक का इम्तिहान
विदर्भ में सिर्फ बीजेपी और कांग्रेस का ही इम्तिहान नहीं है बल्कि दोनों ही पार्टियों के तमाम दिग्गज नेताओं की भी अग्निपरीक्षा होनी है. बीजेपी नेता देंवेंद्र फणडवीस से लेकर विपक्ष के नेता विजय वडेट्टीवार, प्रदेश भाजपा अध्यक्ष चंद्रशेखर बावनकुले, प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष नाना पटोले सहित कई राजनीतिक दिग्गजों की किस्मत का फैसला इस क्षेत्र से होना है. ये सभी नेता महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री बनने का सपना संजोय रखा है. इसके अलावा केंद्रीय मंत्री रामदास अठावले का भी विदर्भ क्षेत्र में अग्निपरीक्षा होनी है. विदर्भ का सबसे बड़ा शहर नागपुर महाराष्ट्र की उपराजधानी है. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का मुख्यालय नागपुर में स्थित है. इस तरह आरएसएस के लिए भी विदर्भ में बीजेपी के दबदबे को बनाए रखने की चुनौती है.
विदर्भ का जातीय समीकरण
विदर्भ की सियासत को किसान, दलित और आदिवासी मतदाता तय करते हैं. दलित वोट की भूमिका विदर्भ में दलित समुदाय की बड़ी आबादी है और जीत हार में अहम भूमिका मानी जाती है. महाराष्ट्र में अंबेडकरवादियों की कई पार्टियां हैं और उनका बड़ा आधार विदर्भ इलाके में है. रामदास अठावले की पार्टी आरपीआई बीजेपी के साथ है. विदर्भ की कई सीटों पर दलित मतदाता 23 फीसदी से लेकर 36 फीसदी तक है. अठावले को अपने साथ रखने का फायदा बीजेपी को मिलता रहा है, लेकिन कांग्रेस नेता राहुल गांधी 2024 में संविधान और आरक्षण के मुद्दे पर दलित समुदाय को अपने साथ जोड़ने में कामयाब रहे हैं.
विदर्भ में ओबीसी के दो समुदाय कुनबी और तेली ,जो मुख्य रूप से कांग्रेस और बीजेपी के बीच बंटे हुए हैं. कुनबी को कांग्रेस का वोटबैंक माना जाता है तो तेली को बीजेपी का कोर वोटबैंक. कांग्रेस डीएमके (दलित-मुस्लिम-कुनबी) के अपने परंपरागत फार्मूले पर भरोसा कर रही है जबकि भाजपा ने ओबीसी, माइक्रो ओबीसी और बंजारा समुदाय को एकजुट करने में लगी है. इस तरह से विदर्भ का चुनाव काफी रोचक हो चुका है और सियासी समीकरण को साधने में जो भी कामयाब रहेगा, उसका ही दबदबा बरकरार रहेगा?
– India Samachar
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