हेमंत सोरेन, मल्लिकार्जुन खरगे और गुलाम अहमद मीर
हेमंत सोरेन लगातार दूसरी बार झारखंड की सत्ता में आने की जद्दोजेहद कर रहे हैं. सहयोगी कांग्रेस और आरजेडी के साथ बीजेपी के खिलाफ मैदान में हैं, लेकिन बीजेपी से ज्यादा हेमंत की पार्टी कांग्रेस की वजह से टेंशन में हैं. इस टेंशन की 5 बड़ी वजहें है. पहली वजह 42 का जादुई आंकड़ा है. कांग्रेस के समर्थन के बिना हेमंत की पार्टी 42 के आंकड़ों को आसानी से नहीं छू पाएगी.
दूसरी वजह कांग्रेस का 29 सीटों पर उम्मीदवार उतारने का फैसला है. कांग्रेस ने समझौते के तहत 29 सीटों पर उम्मीदवार उतारे हैं. झारखंड मुक्ति मोर्चा के बाद गठबंधन में कांग्रेस दूसरी सबसे बड़ी पार्टी है.
इन 2 वजहों के अलावा 3 कारण और हैं, जिससे हेमंत की पार्टी टेंशन में हैं…
कांग्रेस की वजह से JMM की टेंशन क्यों बढ़ी?
कांग्रेस झारखंड मुक्ति मोर्चा की सहयोगी पार्टी है. 2019 में जेएमएम की 30 और कांग्रेस की 15 सीटों के बूते ही दोनों पार्टियों की सरकार बनी. इस बार भी सरकार बनाने के लिए दोनों पार्टियों को बेहतरीन प्रदर्शन करना होगा, लेकिन जिस ढर्रे पर कांग्रेस चल रही है, उससे जेएमएम टेंशन में है.
1. बागियों को मैनेज नहीं कर पा रही कांग्रेस
झारखंड मुक्ति मोर्चा के टेंशन बढ़ने की एक बड़ी वजह कांग्रेस की तरफ से बागियों को मैनेज नहीं कर पाना है. झारखंड की सिमडेगा, मनिका, बिशुनपुर, बरही, तोरपा, सिसई जैसी सीटों पर कांग्रेस के मजबूत बागी मैदान में उतर गए हैं. बरही में तो पूर्व विधायक उमाशंकर अकेला सपा के टिकट पर ही मैदान में ताल ठोक रहे हैं.
सिमडेगा में शांति बाला केरकेट्टा, मनिका में मुनेश्वर ओरांव, तोरपा से पुनित हेम्ब्रम भी बगावत कर मैदान में हैं. कांग्रेस अब तक इन बागियों को मैनेज नहीं कर पाई है. इसके उलट बीजेपी के बड़े बागी मैदान छोड़ वापस पार्टी आ गए हैं. इनमें सत्यानंद झा बाटुल और राज पलिवार का नाम प्रमुख हैं.
कांग्रेस के बागियों के मैनेज न होने की स्थिति में इन सीटों पर खेल होने का डर झारखंड मुक्ति मोर्चा को सता रहा है.
2. इन सीटों पर आरजेडी के सामने कांग्रेस अड़ी
झारखंड विधानसभा की 2 सीटों पर आरजेडी और कांग्रेस दोनों ने उम्मीदवार उतार दिए हैं. इन दो में से एक सीट छतरपुर की और दूसरी सीट बिश्रामपुर की है. बिश्रामपुर में कांग्रेस ने सुधीर महतो को सिंबल दिया है. आरजेडी की तरफ यहां से नरेश प्रसाद सिंह उम्मीदवार हैं.
2019 में निर्दलीय मैदान में उतरे नरेश प्रसाद सिंह को 27 हजार वोट मिले थे. कांग्रेस के चंद्रशेखर दुबे इस चुनाव में चौथे नंबर पर थे. वोटों के बंटवारे का सीधा फायदा बीजेपी के रामचंद्र चंद्रवंशी को हुआ.
चंद्रवंशी यह चुनाव आसानी से जीत गए. इस बार झामुमो चंद्रवंशी को मजबूती से घेरने की कवायद में जुटी थी, लेकिन आरजेडी के साथ-साथ कांग्रेस ने यहां से सिंबल दे दिया है.
इसी तरह छतरपुर का हाल है. कांग्रेस ने यहां से राधाकृष्ण किशोर को टिकट दिया है. आरजेडी के सिंबल पर यहां से विजय कुमार उम्मीदवार हैं. भारतीय जनता पार्टी के टिकट पर फिर से यहां पुष्पा देवी मैदान में हैं.
2019 के चुनाव में यहां से आरजेडी के विजय कुमार पुष्पा देवी से करीब 26 हजार वोटों से हार गए थे. हालिया लोकसभा चुनाव में भी पलामू की इस सीट पर आरजेडी को करारी हार का सामना करना पड़ा था.
इसी तर्क के सहारे कांग्रेस ने यहां से उम्मीदवार उतार दिए हैं. त्रिकोणीय मुकाबला होने की वजह से कहा जा रहा है कि यहां पुष्पा की राह आसान हो सकती है.
3. बड़े नेता भी जंग जीतने के लिए JMM पर निर्भर
कांग्रेस ने इस बार के विधानसभा चुनाव मे कई बड़े दिग्गजों को मैदान में उतारा है. दिग्गजों को मैदान में उतारने के पीछे की रणनीति यह है कि ये आसानी से चुनाव मैनेज कर लेंगे, लेकिन इन दिग्गजों के मैदान में उतरने के बावजूद जेएमएम की टेंशन कम नहीं हुई है.
कहा जा रहा है कि कांग्रेस के दिग्गज नेता भी सोरेन परिवार के भरोसे हैं. सभी नेता कल्पना और हेमंत सोरेन की रैली कराने में जुटे हैं. जमशेदपुर पूर्वी के अजॉय कुमार और डाल्टनगंज के केएन त्रिपाठी तो इसमें सफल भी हो गए हैं.
दूसरी तरफ कांग्रेस के नेता बीजेपी के नैरेटिव को काउंटर अटैक करने में भी अब तक पीछे ही हैं. जेएमएम की तरफ से ही मोर्चा अब तक संभाला गया है.
झारखंड में 81 सीटों पर चुनाव, 42 पर जीत जरूरी
झारखंड की 81 विधानसभा सीटों पर दो चरणों में चुनाव प्रस्तावित है. 13 नवंबर को पहले चरण का चुनाव कराया जाएगा. पहले चरण में कोल्हान और पलामू प्रमंडल की सीटों पर चुनाव कराए जाएंगे.
दूसरे चरण में संथाल परगना और दक्षिण छोटानागपुर इलाके में चुनाव प्रस्तावित हैं. झारखंड में सरकार बनाने के लिए 42 विधायकों की जरूरत होती है.
– India Samachar
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