अध्याय 1 : डिजिटल जाल
मुम्बई से आने वाली उस व्हाट्सएप कॉल ने सब कुछ बदल दिया। अंधेरी गलियों में खड़ी एक वृद्धा के सपनों और सुकून पर वह कॉल जैसे काले बादल बनकर छा गई। कॉल के दूसरी ओर एक शख्स था जिसने खुद को मुम्बई साइबर क्राइम से होने का दावा किया। उसने वृद्धा को बताया कि वह “डिजिटल अरेस्ट” में हैं और उनकी संपत्ति जब्त हो सकती है। यह जाल सटीक था, और डर के साए में, महिला ने धीरे-धीरे 80 लाख रुपये, अपनी जीवन भर की पूंजी, उन अज्ञात लोगों को सौंप दी।
अध्याय 2 : केस का मोर्चा
23 नवम्बर 2024 से 30 नवम्बर 2024 तक, यह साइबर ठगी का सिलसिला जारी रहा। जब मामला अजमेर पुलिस के पास पहुंचा, तो इसकी गूंज जयपुर तक सुनाई दी। केस को तत्काल साइबर क्राइम पुलिस स्टेशन, एसओजी, जयपुर ट्रांसफर किया गया। अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक, श्री मोहेश चौधरी ने इस केस को अपने कंधों पर उठाया और एक विशेष टीम का गठन किया।
जांच के दौरान यह स्पष्ट हुआ कि ठगी गई रकम 150 अलग-अलग बैंक खातों में ट्रांसफर की गई थी। हर खाता, हर लेनदेन एक गुत्थी थी। पैसे की ट्रेल का पीछा करते हुए, पुलिस ने पाया कि ठग नगद राशि को यूएसडीटी क्रिप्टो करेंसी में बदल रहे थे।
अध्याय 3 : शिकारी फंदे में
टीम ने सटीक और सूक्ष्म विश्लेषण करते हुए 15 आरोपियों को गिरफ्तार किया। ये कोई साधारण अपराधी नहीं थे; ये एक संगठित गिरोह के सदस्य थे, जिनके पास 27 मोबाइल फोन, 43 डेबिट कार्ड, 15 चेकबुक और यूएसडीटी में ट्रांसफर के तकनीकी साधन मौजूद थे।
गिरफ्तार अपराधियों में :
राकेश, दिलीप, सुमर्थ, रजनेश, अंकित, और राहुल शर्मा : बैंक खाते उपलब्ध करवाने वाले।
दिलीप और दिलखुश : खातों के किट इकट्ठा कर मास्टरमाइंड्स तक पहुंचाने वाले।
संजीत और चैनसिंह : ठगी की रकम को नकद में बदलकर आगे भेजने वाले।
तरुण, देवेन्द्र सिंह, विनेश कुमार, और बृज किशोर : क्रिप्टोकरेंसी में रकम ट्रांसफर करने के विशेषज्ञ।
अध्याय 4 : अंधेरे की कीमत
इन ठगों की कहानी उनके महंगे शौक और लाइफस्टाइल से भरी थी। कोई लग्जरी गाड़ियां खरीद रहा था, तो कोई विदेशी ट्रिप्स पर पैसे उड़ा रहा था। लेकिन यह सिर्फ एक शुरुआत थी। टीम को शक है कि यह गैंग देशभर में कई और साइबर ठगी के मामलों में भी लिप्त हो सकता है।
अध्याय 5 : आखिरी दांव
यह ऑपरेशन केवल जयपुर टीम का ही नहीं था। बीकानेर और दौसा की पुलिस टीमों ने भी इसमें विशेष सहयोग दिया। अपराध की इस नई डिजिटल दुनिया में, यह केस एक चेतावनी थी—एक ऐसा सबक जो हमें सिखाता है कि डिजिटल युग में भी सावधानी सबसे बड़ा हथियार है।
जांच जारी है। इस अंधेरे का हर कोना खंगाला जा रहा है। क्या यह गिरोह का अंत है, या एक और परत बाकी है? इसका खुलासा आने वाले समय में होगा।
स्रोत : वी. के. सिंह, अतिरिक्त महानिदेशक पुलिस, एटीएस एवं एसओजी व परिस देशमुख, उप महानिरीक्षक पुलिस, एसओजी
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