उत्तर प्रदेश के मौजूदा प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र चौधरी का कार्यकाल पूरा हो गया है और अब नए साल में पार्टी को उसका नया अध्यक्ष मिलने जा रहा है. लेकिन नया अध्यक्ष कौन होगा और किस तबके से होगा इसको लेकर सियासी चर्चाओं का दौर शुरु हो गया है. सूत्र बता रहे हैं कि बीजेपी इस बार यूपी में दलित समाज से अध्यक्ष बनाकर इतिहास बनाने जा रही है. 21 फीसदी दलित वोटरों को साधने की कोशिश में बीजेपी का ये बड़ा सियासी दांव माना जा रहा है. बीजेपी ने यूपी में ओमप्रकाश सिंह, स्वतंत्र देव सिंह और केशव प्रसाद मौर्य जैसे ओबीसी समाज के लोगों को यूपी प्रदेश अध्यक्ष की कमान दे चुकी है लेकिन अभी तक इस पद पर कोई दलित समाज से जुड़ा व्यक्ति आसीन नहीं हो पाया है.
लंबे समय तक सवर्ण खासकर बनिया समाज की पार्टी मानी जाती थी बीजेपी, लेकिन समय के साथ साथ बीजेपी ने बाकी समाज को भी अपने साथ जोड़ने की कला विकसित की. 2017 के विधानसभा चुनाव में गैर यादव ओबीसी और गैर जाटव एससी वोट बैंक के सहारे बीजेपी 300 प्लस के आंकड़े तक पहुंच गई. 2022 में दलित लाभार्थियों और बसपा से मोह भंग हो चुके दलित वोटरों का भी समर्थन बीजेपी को मिला और बसपा का वोट बीजेपी की तरफ शिफ्ट होने से 275 सीटों के साथ बीजेपी की शानदार वापसी हुई. लेकिन लोकसभा चुनाव में पीडीए और संविधान के मुद्दे पर विपक्ष ने दलित वोटबैंक में सेंध लगाने में कामयाब हो गई और यूपी में बीजेपी का प्रदर्शन निराशाजनक रहा.
यूपी में बीजेपी नया प्रयोग करने के मूड में
अब दलित समाज का 21% वोट बीजेपी के साथ मजबूती से जुड़े इसको लेकर यूपी में बीजेपी नया प्रयोग करने के मूड में है. जिन नामों की सबसे ज़्यादा चर्चा है उनमें विद्या सागर सोनकर और रमाशंकर कठेरिया का नाम सबसे ऊपर है. वरिष्ठ राजनैतिक विश्लेषक राजेंद्र कुमार का कहना है कि यूपी में आजतक बीजेपी ने किसी दलित को प्रदेश अध्यक्ष नही बनाया है. इस बार हो सकता है कि बीजेपी ये कर के चौका दे! लेकिन ये जरूर है कि अगर दलित समाज से भी कोई अध्यक्ष बनता है तो उसमें कम से कम संगठन के काम की समझ हो.
वर्तमान अध्यक्ष की सबसे बड़ी समस्या ही यही है कि वो संगठन का काम नहीं जानते. इसके साथ ही सीएम योगी से उनके संबंध अच्छे हों और वो विवादित ना हो. रमा शंकर कठेरिया को लेकर विवाद भी है और वो सीएम के गुड बुक में भी नही हैं. विद्या सागर सोनकर संगठन से जुड़े रहे हैं और गैर विवादित होने के साथ साथ सीएम के गुड बुक में भी हैं. उनके नाम पर मुहर लग जाए तो कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए. प्रियंका रावत के नाम की भी चर्चा है हालांकि सत्ता से उनके मतभेद उनके लिए रोड़ा बन सकते हैं. पूर्व बसपा सांसद जो अब बीजेपी में हैं उनके नाम की लॉटरी भी लग सकती है. उनके पक्ष में ये बात जा सकती है कि बसपा के कोर वोटरों को शिफ्ट कराने की रणनीति में वो मददगार भी हो सकते हैं!
विद्यासागर सोनकर का नाम सबसे ज्यादा चर्चा में
बीजेपी अध्यक्ष के लिए दलित चेहरे के तौर पर विद्यासागर सोनकर का नाम सबसे ज्यादा चर्चा में है. जौनपुर के रहने वाले विद्यासागर सोनकर विद्यार्थी जीवन के दौरान ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े और फिर भाजपा के बूथ अध्यक्ष बने. वह अनुसूचित मोर्चे के प्रदेश अध्यक्ष भी रहे.सभासद से शुरुआत करने वाले सोनकर 1996 में सैदपुर सीट से सांसद चुने गए.हालांकि इसके बाद भी उन्होंने लोकसभा और विधानसभा का चुनाव लड़ा लेकिन जीत नहीं नसीब हुई.
दलितों को रिझाने के लिए लगातार उनके हितों की योजनाएं चलाने वाली मोदी सरकार ने अहम पदों पर दलितों को तव्वजो भी दी.नतीजा यह रहा कि 24 करोड़ की आबादी वाले उत्तर प्रदेश की 80 लोकसभा सीटों में से अनुसूचित जाति की 17 आरक्षित सीटों पर बसपा सहित दूसरे दलों की पकड़ ढीली होती जा रही है. राष्ट्रीय महामंत्री विनोद तावड़े को संगठनात्मक चुनाव में उत्तर प्रदेश का पर्यवेक्षक बनाया गया है.
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