सीरिया में एक बार फिर गृह युद्ध की आग भड़क चुकी थी. विद्रोही बलों के आतंकियों ने सीरिया की मशहूर कमर्शियल सिटी कहे जाने वाले अलेप्पो पर बड़ा हमला करके इसके आधे से अधिक हिस्से पर कब्जा कर लिया है. विध्वंस के इस नई उन्माद ने पूरी दुनिया को एक बार फिर चौंका दिया. विद्रोही बलों का हमला राष्ट्रपति बशर अल-असद के शासन के लिए बड़ी चुनौती बन गया है. आशंका है कि पहले से ही हिंसा ग्रस्त मध्य पूर्व को यह हमला और भी युद्ध की आग में झोंक सकता है. विद्रोहियों ने हमले में अलेप्पो के आस-पास के इलाकों को भी निशाना बनाया है. खबरों के मुताबिक विद्रोही बाहरी इलाकों की ओर तेजी से बढ़ रहे हैं. अगर विद्रोही अंदर घुसने में कामयाब हो जाते हैं तो देश के लिए नई चिंता का सबब बन सकता है. राष्ट्रपति असद का नियंत्रण कमजोर पड़ सकता है.
सीरिया में विद्रोहियों की लड़ाई नई नहीं है. साल 2012 में भी विद्रोही बलों ने अलेप्पो के पूर्वी हिस्से पर कब्ज़ा कर लिया था, जिसके बाद यह राष्ट्रपति असद के खिलाफ़ विद्रोह का अड्डा बन गया. हालांकि 2016 में सीरिया की सरकार ने रूसी हवाई अभियान की मदद से उस शहर को फिर से आजाद करा लिया था. अलेप्पो को वापस अपने कब्ज़े में लेकर असद ने तब यहां अपनी पकड़ मजबूत कर ली थी. लेकिन 2024 के हालात अलग हैं. आज की तारीख में रूसी सेना यूक्रेन के साथ तो इजराइली सेना हिजबुल्लाह से युद्ध में बिजी है. लिहाजा सीरिया को इन देशों से अपेक्षित मदद की संंभावना कम ही है.
किस आतंकी समूह ने किया हमला?
अलेप्पो पर विद्रोहियों के हमले में सौ से ज्यादा लोगों की मौत होने की आशंका है. इस हमले के बाद हयात तहरीर अल-शाम के आतंक की वापसी की बात कही जा रही है. हमले करने वाले विद्रोहियों के गुट का नेतृत्व हयात तहरीर अल-शाम (HTS) कर रहा है. यह कुख्यात आतंकी संगठन अल-कायदा से संबद्ध रहा है. पिछले कुछ सालों के भीतर इस संगठन ने अपना नाम बदल लिया है. अमेरिका और संयुक्त राष्ट्र ने HTS को एक आतंकवादी संगठन माना है. इसका लीडर अबू मोहम्मद अल-गोलानी है.
हालांकि खबर है कि यूक्रेन से युद्ध में व्यस्तता के बावजूद सीरिया के सरकारी मीडिया के मुताबिक रूसी हवाई सहयोग से सीरियाई सेना ने इदलिब और अतारेब जैसे शहरों में कब्जे वाले क्षेत्रों पर तेज हमले किए हैं. इन हमलों में यहां काफी संख्या में नागरिक हताहत भी हुए हैं. इसमें ईरान को भी नुकसान की खबर है. गौरतलब है कि ईरान सीरिया के राष्ट्रपति असद का प्रमुख सहयोगी है. असल का भी शिया समूह से ताल्लुक है. असद के शासन में लंबे समय से ईरान का समर्थन हासिल है.
सीरिया संघर्ष का मीडिल-ईस्ट पर प्रभाव
सीरिया में आतंकी संगठन का यह हमला तब हुआ है जब मध्य पूर्व के कई देशों में पहले से ही खून-खराबा चल रहा है. युद्ध की विभीषिका से आम नागरिक हलकान हैं और ऐतिहासिक इमारतें जमींदोज हो चुकी हैं. शहर के शहर तबाही का मंजर आम है. लोग पलायन करने को मजबूर हैं. पलायन मीडिल ईस्ट की नई समस्या है. ईरान, हमास, हिजबुल्लाह, इजरायल, रूस, यूक्रेन में लंबे समय से संघर्ष जारी है. लेबनान में हिजबुल्लाह और गाजा में हमास के खिलाफ इजरायल के सैन्य अभियान तो यूक्रेन में रूस के हमले जारी हैं.
गौरतलब है कि उत्तर-पश्चिमी सीरिया में करीब 4 मिलियन लोग रहते हैं जिनमें से अधिकांश संघर्ष के दौरान कई बार विस्थापित हो चुके हैं. बहुत से लोग भीड़भाड़ वाले शिविरों में रहते हैं. यहां खाना-पीना और स्वास्थ्य देखभाल की अपनी मुश्किलें हैं. विस्थापन और भुखमरी एक अंतरराष्ट्रीय समस्या बन गई है. अब यहां सीरिया के फिर से अस्थिर होने पर हालात और बिगड़ने की आशंका है.
क्षेत्र से करीब 7,000 परिवार का पलायन
ताजा हालात को देखते हुए इंटरनेशनल रेस्क्यू कमेटी ने भयावह अनुमान लगाया है. कमेटी के मुताबिक हाल ही में युद्ध से परेशान करीब 7,000 परिवार यहां से विस्थापित हुए हैं. इनके सामने जीवन जीने की बड़ी समस्या आन पड़ी है. हिजबुल्लाह-इजरायल और यूक्रेन-रूस युद्ध के चलते पहले से ही यहां लाखों की संख्या में विस्थापन हो चुका है. अब सीरिया के अलेप्पो से भी सामूहिक विस्थापन खतरा पैदा हो गया है. जाहिर है मध्य-पूर्व के संघर्षरत देशों में विस्थापन एक बड़ी समस्या बनती जा रही है. इंटरनेशनल कम्यूनिटी के लिए यह नई चिंता का कारण बन सकता है.
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सौजन्य से टीवी9 हिंदी डॉट कॉम
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