सनसनी से दूर और सच के एकदम करीब यह रूह कंपा देने वाली सच्ची घटना पर आधारित मुंहजुबानी-कहानी है. अब से 36 साल पहले 2 अक्टूबर सन् 1986 की. वो घटना जिसमें तब देश के प्रधानमंत्री रहे राजीव गांधी के ऊपर डेढ़ से दो घंटे के भीतर एक ही स्थान पर तीन बार गोली झोंकी गई. उस कातिलाना हमले में यह बात दूसरी है कि निशाना चूक गया और एक भी गोली प्रधानमंत्री का बाल भी बांका नहीं कर सकी. उस घटना के चश्मीद खुद भारत के राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह और तत्कालीन केंद्रीय गृहमंत्री बूटा सिंह थे. हमला चूंकि देश के प्रधानमंत्री के ऊपर हुआ था. लिहाजा हुकूमत ने घटना की जांच करवाई सीबीआई से. साथ ही उस घटना में लापरवाही बरतने वाले अफसरों को ठिकाने लगाने के लिए, देश के तेज-तर्रार ब्यूरोक्रेट टीएन शेषन के नेतृत्व में एक टीम भी गठित की गई.
हिंदुस्तानी हुकूमत की सिफारिश पर ही उस घटना के वक्त दिल्ली पुलिस में एडिश्नल कमिश्नर (सिक्योरिटी-ट्रैफिक) रहे, 1965 बैच के आईपीएस अधिकारी गौतम कौल को ‘सस्पेंड’ कर दिया गया था. इसके बावजूद कि गौतम कौल गांधी-नेहरू परिवार के करीबी और रिश्तेदारी में भी खास लगते थे. उस घटना के इकलौते और मुख्य आरोपी तब 24-25 साल की उम्र के रहे करमजीत सिंह को सीबीआई द्वारा की गई पड़ताल के आधार पर 14 साल की सजा सुनाई गई. 14 साल में पांच महीने पहले ही उन्हें उनके नेक चाल-चलन के आधार पर तिहाड़ जेल से रिहा कर दिया गया. टीवी9 भारतवर्ष ने अब उस वाकये के 36 साल बाद पंजाब के सुनाम ऊधम सिंह वाला सब डिवीजन जिला संगरूर में रह रहे करमजीत सिंह को तलाश लिया. 62 साल के करमजीत सिंह से उस घटना को लेकर जब विस्तृत में बात की गई. तो उनसे हासिल जानकारियों ने भी उस घटना में पोल हिंदुस्तानी खुफिया और सुरक्षा एजेंसियों की ही खोली.
‘अगर सड़कों पर सेना उतर गई होती…’
बकौल करमजीत सिंह, “मैं कोई प्रफेशनल क्रिमिनल न था न हूं. दरअसल इंदिरा गांधी के मर्डर के बाद राजीव गांधी प्रधानमंत्री बन गए. तो उनके चारों तरफ ऐसे अफसरों की भीड़ लग गई, जो उन्हें (राजीव गांधी) को चारों ओर से हर वक्त घेरे रहते थे. यहां तक कि राजीव गांधी के सोचने-समझने की ताकत पर वे ही चारों ओर मंडराते रहने वाले चंद अफसरों की भीड़ हावी हो चुकी थी. नतीजा यह हुआ कि देश में बेकसूर सिख काटे-मारे और जलाए जाते रहे. राजीव गांधी अपने उन चंद अफसरों की टोली की जमात के बीच फंसे रहे. बस यही चीज मुझे खल गई. अगर वक्त रहते उस वक्त हुकूमत ने सड़कों पर सेना उतार कर सख्ती कर ली होती. तो उस तरह का सिख नरसंहार होने से बचाया जा सकता था, बाद में जिस 1984 सिख नरसंहार ने दुनिया को हिला डाला था. मैं तो उस वक्त 24-25 साल का ही इंजीनियरिंग का स्टूडेंट था. दिल्ली में ही रहकर पढ़ रहा था. और पेट पालने के लिए छोटी मोटी नौकरी भी कर रहा था. जब बेकसूर सिखों को जलते-मरते देखा तो मेरे जैसे किसी भी नौजवान के मन में आक्रोश और बदले की भावना पैदा होना लाजमी था. वही मेरे साथ भी था.”
‘मैं पेड़ के ऊपर छिपा बैठा था’
देश के प्रधानमंत्री के ऊपर सीधे-सीधे गोलियां झोंक देना ही एक इंजीनियरिंग और मैथमैटिक्स के स्टूडेंट के दिमाग में क्यों आया? आप तो होनहार स्टूडेंट थे. पूछने पर करमजीत सिंह कहते हैं, “गुस्सा, क्षोभ, आक्रोश में इंसान सबकुछ भूल जाता है. बस मैं भी भूल गया था. उससे पहले मैंने कभी जिंदगी में सोचा भी नहीं था कि मैं हाथ में हथियार उठाकर सीधे-सीधे देश के प्रधानमंत्री के ऊपर ही गोलियां चलाने जा पहुंचूंगा. आज सब कुछ एक डरावना सपना सा लगता है. मुझे उस घटना पर न कभी पछतावा हुआ न आज है. मैं तब भी सही था और आज भी सही हूं. राजीव गांधी के ऊपर मैंने पहली गोली चलाई थी सुबह करीब 6 बजकर 25-26 मिनट पर. इसके बाद भी मगर मौके पर (राजघाट गांधी समाधि स्थल) मौजूद सुरक्षाकर्मी मुझे नहीं देख सके. लिहाजा मैं जिस पेड़ के ऊपर छिपा हुआ बैठा था वहीं बैठा रहा. उसके बाद आठ बजे के बाद जैसे ही राजीव गांधी वापिस जाने लगे मैंने उन्हें निशाना बनाकर दो गोलियां फिर चलाईं. वो दोनों फायर भी निशाने पर नहीं बैठे. हां उनमें से एक गोली राजीव गांधी के सिर के पास कान को हवा देती हुई निकल गई.”
‘सोच लिया था कि गोली सीधे सिर पर मारूंगा’
उस रोंगटे खड़ी कर देने वाली घटना की आपबीती सुनाते हुए करमजीत सिंह कहते आगे कहते हैं, “दरअसल मैंने जब राजीव गांधी सुबह के वक्त समाधि स्थल पर घुसे तभी ताड़ लिया था कि, वे बुलेटप्रूफ जैकेट बदन पर पहने हैं. लिहाजा मैंने तय कर लिया कि गोलियां उनके सीने या बदन पर न चलाकर सिर पर मारूंगा, जहां लगने वाली चोट हर हाल में मुझे कामयाबी देगी ही देगी. मगर किस्मत ने उस दिन साथ नहीं दिया. और मैंने खुद ही पेड़ से उतरकर सरेंडर कर दिया. मय हथियार. सीबीआई ने जांच करके मेरे खिलाफ कोर्ट में चार्जशीट दाखिल की. जिसके चलते मुझे 14 साल की सजा हुई. मेरे नेक चाल-चलन के चलते मुझे 14 साल से 5 महीने पहले ही तिहाड़ जेल से रिहा कर दिया गया.”
‘शुक्र है कि पंजाब पुलिस की जगह सीबीआई को सौंपा गया’
सीबीआई की रिमांड के दौरान का अनुभव कैसा रहा? पूछने पर करमजीत सिंह बोले,”सीबीआई मेरे लिए मेरी वो प्रफेसर साबित हुई जिसने मुझे आज पढ़ा-लिखाकर नेक आदमी बनाकर संगरूर जिला कोर्ट में प्रैक्टिशनर वकील बना दिया है. अगर कहीं मैं सीबीआई की बजाए पंजाब पुलिस के हाथों में थमा दिया जाता. तो मैं या तो ठिकाने लगाया जा चुका होता. या फिर मारतोड़ के पंजाब पुलिस मुझे पक्का नामी बदमाश बनवा चुकी होती.”
सीबीआई तो बेहद सख्ती से पेश आने के लिए बदनाम है. आप उसे ही (सीबीआई को) प्रफेसर बता रहे हैं अपना? पूछने पर करमजीत सिंह बताते हैं, “दरअसल सीबीआई के हाथों में जाने के बाद और फिर 14 साल की सजा होने के बाद. मेरे पास एक ही रास्ता बचा था. मैं खुद को बदलकर दिखाऊं और इज्जत की जिंदगी जी सकूं. उसके लिए मैंने उस हद तक की ईमानदारी से मेहनत और पढ़ाई की कि मैं जेल से तो 14 साल में 5 महीने पहले छूटा ही. आज मैं उसी अपने में लाए गए बदलाव के चलते इज्जत के साथ जिंदा रहकर संगरूर कोर्ट में वकालत कर पा रहा हूं. मैंने सुप्रीम कोर्ट तक साबित कर दिया कि मैं हार्डकोर प्रफेशनल क्रिमिनल नहीं हूं. मैं आवेश, गुस्से, क्षोभ, बदले की भावना के चलते अचानक विद्रोह की भावना के वशीभूत होकर गोली चलाने पर उतर आया था. मैंने कहीं कभी किसी आतंकवादी या बदमाशों के कैंप-गैंग में किसी अपराध की ट्रेनिंग नहीं ली थी.”
मैथ में जबरदस्त था करमजीत
इस बारे में टीवी9 भारतवर्ष ने सीबीआई की उस टीम के प्रभारी शांतनु सेन से बात की, जिस सीबीआई की टीम की पड़ताल पर करमजीत सिंह को 14 साल की सजा हुई थी. बकौल शांतनु सेन, “करमजीत सिंह जब तक हमारी रिमांड में रहा. कभी भी सीबीआई को उससे कोई शिकायत नहीं रही. वरना प्रधानमंत्री के ऊपर गोली चलाने की हिम्मत रखने वाला कोई अपराधी सीबीआई के साथ भला कहां शराफत से पेश आता. दूसरे हमने (सीबीआई) जब-जब भी उससे पूछताछ की. तब-तब हमें वो (करमजीत सिंह) हार्डकोर क्रिमिनल नहीं लगा. वो जुझारू था. मगर उसमें किसी घटना को लेकर गुस्सा पैदा हो गया था. जिसके चलते उसके अंदर विद्रोह की भावना अचानक भड़क उठी. और वो सीधा राजघाट पहुंच गया प्राइम मिनिस्टर के ऊपर गोली चलाने के लिए. जो उसने किया उसकी सजा सीबीआई ने उसे दिलवाई. हालांकि, यह बहुत पुरानी पड़ताल से जुड़ा किस्सा है. अब और बहुत कुछ याद नहीं है. हां, करमजीत सिंह के बारे में इतना जरूर याद आता है कि वो उस जमाने में मैथ का जबरदस्त स्टूडेंट सीबीआई को लगा था. उसने राजीव गांधी के ऊपर हमला करने से पहले और बाद में यह तय कर लिया था कि, वो किस एंगल-कोण से कितनी दूरी से गोली चलाएगा. तब वो गोली निशाने पर जाकर बैठेगी? यह हमारे प्राइम मिनिस्टर, हमारी एजेंसियों की किस्मत अच्छी और करमजीत का नसीब गड़बड़ रहा कि, उस दिन उसका निशाना चूक गया.”
टीवी9 भारतवर्ष के इस विशेष संवाददाता से एक्सक्लूसिव बाततीच के दौरान बेबाकी से करमजीत सिंह बताते हैं. “मेरे प्रोफेसर मुकंदी लाल गुप्ता थे, जो मेरे तेज दिमाग को देखकर अक्सर कहा करते थे कि एक दिन मैं, इस देश का होनहार इंजीनियर बनूंगा. यह मेरी बदकिस्मती रही कि राजीव गांधी के ऊपर गोली चलाकर मैं सजायाफ्ता मुजरिम-अपराधी बन गया. इसमें किसी का दोष नहीं है. सब बुरे वक्त और हाथ की रेखाओं का तमाशा था. जो सिर्फ वक्त पढ़ जान और समझ रहा था. मैं उस सबसे अनजान था.”
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